Book Title: Anekant 1984 Book 37 Ank 01 to 04
Author(s): Padmachandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 91
________________ 'शाहनामा-ए-हिन' में नधर्म लिया था जन्म इस इंसा ने एक क्षत्री घराने में । ना ऐसी पारसः हस्ती कोई भी थी उस जमाने में ॥५॥ दिया उपदेश लोगों को इन्होंने तीन बातों का । मिटाया फर्क पहले अपने नीच-ऊंच जातों का ॥६॥ . कहा लोगों से, इजा जानदारों को न पहुंचाओ। करो मतलक", न चोरी लग्वियत से बाज आजामो॥७॥ ये तीनों रास्ते, जैनी जिसे, से रत्न" कहते हैं । इन्हीं अच्छे उसूलों के वो सब पाबंद रहते हैं ॥८॥ महावीर स्वामी वर्षमान ये सच है 'वर्धमां' है अस्ल में इस धर्म के बानी । न इसके बाद फिर पैदा हुआ उनका कोई सानो ॥३॥ ये छह सौ साल पहले इब्ने मरियम" के हए पैदा। वैशाली में हुआ था जन्म, पटना के करीब उनका ॥२। ये क्षत्री कौम के एक मुक्तदर" राजा के थे दिलबद"। श्री गौतम के जैसे उनके भी हालात थे हरचद ॥३॥ उन्होंने तीस साला उम्र में घर बार को छोड़ा । निशात-आमेज दौरे जिंदगी से अपना रुख मोडा ॥४॥ हए शामिल वो पार्श्वनाथ के चेलों के मण्डल में । गिरोही" शक्ल में फिरते रहे सूनसान जंगल में ॥५॥ मगर मतलक न पाई, रुह और दिलने तमानि नत । के ठकराया था, जिसकी जुस्तज में ऐश और राहत ।।६। लिहाजा हट गए दामन बचाकर खार जारों से। निकाली आत्मा की नाव तूफांखेज धारों से ॥७॥ फिर उसके बाद बारह साल तक इतनी रियाजत" की। के मिलती ही नहीं ऐसी मिसाल अब इस्तिकामत की ॥६॥ उन्हें फिर ज्ञान, तेरहवें बरस आखिर हुआ हासिल। मिला निर्वाण, याने मिल गई लाहुत" की मंजिल ॥६॥ फिर उनके गिदं मजमा लग गया, हल्का बगोशोका" । शरावे-मारफत के पीने वाले बादा नोगों का ॥१०॥ कि अपने धर्म की तबलिग" चारों सिम्न हिर-किरकर। अहिंसा और नेकी का सबक, देते रहे घर-घर ॥१॥ (क्रमश:) संदर्भ-सचि , धरती २. धर्म ३ झंडा ४. गुटो ५. धर्म के . आम जनता ७. बहुन अच्छे ८. काल चक ९. पहला १० दूसरा ११. इतिहास १२. तलवार चलाने वाला १३. धर्म में नई बात १४. तौबा करके १५. अभिरुचि १६. आकर्षित १७. पराजित १८. विजेता १६. पीछे २०. गुट २१. नुकसान २२. मिलते-जुलते २३. बहुत पवित्र २४. धर्म २५. वर्धमान २६. तीर्थकर २७. एहसान करने वाला २८. रहनुमा २६. दुख-तकलीफ ३०. मुठपन ३१. दुरी बात ३२. तीन रत्न ३३. ईसा पूर्व ३४. बहुत बड़े ३५. बेटा ३६. ऐशो आरामी जिंदगी ३७. गिरोह, गुट ३८. चैन ३६. तपस्या ४०. दृढ़ता ४१. ब्रह्म लीनता की अवस्था ४२. चाहने वालों का ४३. ईश्वर चाहत की शराब ४४. प्रचार।

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