Book Title: Anekant 1984 Book 37 Ank 01 to 04
Author(s): Padmachandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 73
________________ वर्ष ३७ किरण ३ ओम् अहम् परमागमस्य वीजं निषिद्धजात्यन्धसिन्धुरविधानम् । सकलनयविलसितानां विरोधमथनं नमाम्यनेकान्तम् ॥ वीर सेना मन्दिर, २१ दरियागंज, नई दिल्ली-२ वीरनिर्वाण सवत् २५१० वि० सं० २०४० (जुलाई-सितम्बर १६८४ सुप्रभात स्तोत्रम् ( नेमिचन्द्र यति- विरचितम्) चन्द्रार्क शक्र-हरि विष्णु- चतुर्मुखाद्यास तीक्ष्णः स्ववारण निवहैविनित्य लोकम् व्याजृम्भतेऽहमिति नात्र नरोऽस्ति कश्वित्तं मन्मथं जितवतस्तव सुप्रभातम् ॥ १ ॥ गन्धर्व - किन्नर - महोरग दे य-यक्ष-विद्याधरामर-नरेन्द्र समचताङ्घ्रिः । संगीयते प्रथित-तुम्बुर-नारदेश्व कीर्तिः सर्वन भुवने तव सुप्रभातम् ॥२॥ अज्ञान-मोह तिमिरौघ-विनाशकस्य सज्ज्ञान- चारु- बलि- भूक्ति-भूषितस्य । भव्यम्बुजानि नियतं प्रतिबोवस्त्र श्रीमज्जिनेन्द्र दिनकृतव सुप्रभातम् ॥३॥ श्वेतातपत्र- हरिविष्टर-चामरौध-भामण् लेन सह दुन्दुभि-दिव्यभाषा- । शोकाग्र देवकर मुक्त पुष्पवृष्टी देवेन्द्र पूजितवतस्तव सुप्रभातम् ॥ ४ ॥ तृष्णा क्षुत्रा जनन-विस्मय-राग-माह-चिन्ता-विजाव-मद-खेद जरा रुजोधाः । प्रस्वेद - मृत्यु - रति रोष भयानि निद्रा देहे न सन्ति हि यतस्तव सुप्रभातम् ॥ ५ ॥ भूतं भविष्यदपि सम्प्रति वर्तमानं ध्रौव्यं व्ययं प्रभवमुत्तमनप्यशेषम् । त्रैलोक्य-वस्तु विषय सविशेषमित्यं जानासि नाथ ! युगपत्तव सुप्रभातम् ॥ ६ ॥ स्वर्गापवर्ग-सुखमुत्तममव्ययं यत् तद्देहिनां सुभजतां विदधासि नाथ ! हिसानु तान्यवनिता पवत्त सेवा-संत्यागकेन हि यतस्तव सुप्रभातम् ॥ ७॥ संसार - घोर-तर- वारिधि यानपात्र ! दुष्टाष्टफर्म- निकरेन्धन दीप्त-वन्हे ! प्रज्ञान- मूढ-मनसां विमलंकचक्षुः श्रानेमिचन्द्र-यतिनायक ! सुप्रभातम् ॥ ८ ॥ प्रध्वस्तं परतारक मेकाम्स-ग्रह-विवजितं विमलम् । विश्वतमः प्रसर- हरं श्रुतप्रभातं जयति विमलम् ॥ ६ ॥

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