Book Title: Anekant 1984 Book 37 Ank 01 to 04
Author(s): Padmachandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 69
________________ (ताकि सनद रहे ): श्रो वर्षचन्द्र शास्त्री, प्रा० वर्मसागर महाराज, संघस्थ १०००-५०० वर्ष बाद जब मनुत्तर-योगी के विसंगत प्रसंग उभर कर सामने आएंगे तब उनका प्रतिवाद महो सकेगा और मभियोग में निश्चय ही विगम्वरत्व की पराजय होगी और उस पराजय में कारण होगादिगम्बर क्षेत्र में दिगम्बर-प्रेरित दिगम्बर-लिखित दिगम्बर समिति द्वारा प्रकाशित अनुत्तर-योगी तीर्थकर महाबीर" उपन्यास । जो सभी कोटों में पेश होकर श्वेताम्बर मान्यताओं को पुष्ट कर रहा होगा और तब दिन धर्म संरक्षिणी सभाएं और दि० तीर्थ-रक्षक कमेटियां बसी संस्थाएं और उनके पर-घर, कर्णधार सिर धुन रहे होंगे और श्री कुन्दनलाल जैन की अन्तर्वेदनाएं सही सिद्ध हो रही होंगी। Xx x 1514914514614546474 LFLFT S L F 4545454f1f4f1bf1f1f1159514471f7654574575545454 MESSAGE OF JAINA YOGI SWASTI SRI BHATTARAKA CHARUKIRTI PANDITACHARYA SWAMIJI MOODBIDRI. नानाना-नाना-IITE.I- IIIIIII "WE FIND YOUR ARTICLE IS A GOOD PIECE OF REBUTTAL. YOU DESERVE CONGRATULATIONS OF ONE AND ALL OF JAIN SAMAJ FOR YOUR FREE FRANK AND FEARLESS REMARKS IN YOUR ARTICLE. PEOPLE OF YOUR CALIBRE SHOULD COME FOR- ' WARD WHEREVER THERE IS A THREAT TO REALITY-SADDHARMA. YOUR ACTION IS WELL-TI'IED AND TESTED. "BHADRAM BHUYAT, VARDHTAM JIN SHASNAM WITH BEST OF BLESSINGS." 13-6-84 ---$1974 1975 1974 TL 1474545454545454545747954745745755475575694889 - (पृ. ३२का शेषांश) बोर दत्त-चित्त है, कई प्रकाशन हो चुके हैं। प्रस्तुत कोश वाऽनेनेति मंगलं । मागलो भूदिति मंगलं। माद्यन्ति अन्य से आगम-ज्ञान के मार्ग प्रशस्त होंगे और जिज्ञासु हृष्यन्ति अनेनेति मंगलं । इत्यादि। बनेकों शब्दों के अनेकों अर्थों को अनेकों भांति हृदयगम हम लेखकों, संयोजकों और प्रका गकों का अभिनन्दन कर सकेंगे । जैसे-मंगिज्जएऽधिगम्मइ जेण हिजतेण मंगलं करते हैं जो उन्होंने उत्तम कृति को उत्तम रूप में संजोकर, होइ । महवा मंगो धम्मो त लाइ तयं समादत्ते । मंगालयह छपाकर सजिल्द हमें प्राप्त कराया । धन्यवाद । भवामो मंगलमिहेवमाइ नेरुत्ता। मस्यते अनेन मन्यते -सम्पादक

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