Book Title: Anekant 1984 Book 37 Ank 01 to 04
Author(s): Padmachandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 67
________________ वर्षमान भक्तामर आनंद-सागर में नहावे गुण कथा के कथन में, असमर्थ हो बस ! भक्तिवश नमते तिहारे चरण में ॥४०॥ तुम हो सकल मंगल विधायक इसलिए तुमको नमू, तुम हो सकल शान्ति प्रदायक इसलिए तुमको नमूं । तम हो सकल कर्मारि नाशक इसलिए तुमको नम।। तुम हो सकल तत्त्वोपदेशक इसलिए तुमको नमू ॥४१॥ तुम हो सकल जग जीव रक्षक इसलिए तुमको नम, तुम हो सकल शासन प्रभावक इसलिए तुमको नमू । तुम हो सकल जग हित विधायक इसलिए तुमको नमू, तुम हो सकल निर्मल गुणाकर इसलिए तुमको नमू ॥४२॥ जो निर्दयो राक्षस पिशाचों से प्रभो! हा ! विहित हैं, उपसर्ग-अथवा दुराचारी खलों से जो प्रकृत हैं। आक्रमण दुःख दरिद्र शत के जाल से जो सृष्ट है, वे कष्ट सब तव तेज से प्रभ ! शीघ्र होते नष्ट हैं ॥४३॥ सब रिद्धि सिद्धि वर प्रदायक विमल यह स्तवराज हैं, श्री वीर जिनवर देव का जो पढ़े जन निर्व्याज है। सुरवक्ष चिन्तामणि निट सर्वार्थ सिद्धि सभी सदा. सेवा तथा अनुकूल करने के लिए आते मुद ।।४।। जो चोर रिपु शार्दूल पन्नग गज दवानल से उटी, जो हिंस्र गमनागमन से खल बधनों से है पटी। बस इसी से प्रभुवर ! जहां की भूमि दुर्गम है बनो, तव ध्यान से ऐमी बनी बनती बना सो सुखना ॥५॥ शार्दूल पन्नग प्रखर शूकर हिस्र जीवो से घिरी, चोरो नुकीले कण्टका से हा! बनी जो है भरी। हे नाथ ! तेरे स्मरण से वह बने नन्दनवन जिसी, आनंद को लहरे बहें यों भक्तजन कहते ऋषी ॥४६॥ जो अति भयानक महादुर्गम सुभट से अति विकट है, अति कष्टप्रद बलभ्रष्ट जिसमें मृत्यु भो अति निकट है।। जो विविध दुखशत से भरा बहती जहां नगधार है, उस युद्ध में तव नाम देता नाथ ! शांति अपार है ॥४७॥ नाथ ! बापके गुण पुष्पों की, यह सुरम्य संस्तुति-माला। मैंने रची गूंथकर रुचि से, पहिनेगा जो कोई लाला । बमकेगा वह उजियाला बन जगमें, जग उसका होगा। होगा उसका ठाठ निराला, "मूल" चंद्र जैसा होगा ॥४॥ (मालपोन नि०) श्री महावीर प्रवासी

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