Book Title: Anekant 1956 Book 14 Ank 01 to 12
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 13
________________ कसाय पाहुड और गुणधराचार्य (परमानन्द शास्त्री) प्रन्थ-परिचय श्रात्माके शुद्ध, एवं सहज विमल अकषाय भावको भारतीय मुनि-पुगव आचार्योंमें श्रीगुणधरा- पेज दोसपाहड' या कसायपाहुड कहते हैं । मोह प्राप्त करनेका जिसमें विवेचन किया गया हो, उसे चार्यका नाम खास तौरसे उल्लेखनीय है, क्योंकि वे कर्म आत्माका सबसे प्रबल शत्रु है। राग-द्वपादिक गोवद्धनाचायके शिष्य भद्रबाहु श्रुतकवलीको शिष्य दोष मोह कर्मकी ही पर्याय हैं। दृष्टिगत होने वाला परम्परामें होनेवाले पूर्वधर आचार्यों में से हैं। यह संसारचक्र सब इसी मोहका विस्तृत परिणाम उन्होंने ज्ञानप्रवाद नामक पाँचवें पूर्वके दशवें । है। उसीके जीतनेका इस ग्रंथमें सुन्दर विधान किया वस्तु नामक अधिकारके तृतीय प्राभृतसे, जिस गया है । विवेकी जनोंको उसका स्वरूप समझ का नाम 'पेज्जदोस पाहुड' है, 'कसाय पाहुडसुत्त'की लेना कपायचक्रके तापसे छूटनेकी अनुपम औषधि व रचना की थी। उन्होंने उस पूर्वका समस्त सार अथवा उसीसे मानव जीवनकी सफलता है। यह ग्रन्थ नवनीतामृत १८० मूल गाथाओं और ५३ विवरण : गाथाओं में उपसंहारित किया था। कसायपाहुडसुत्तके म मुमुक्षुओंके बड़े कामकी चीज है। मूल पाठपरसे ऐसा प्रतिभासित होता है कि यह ग्रन्थकर्ता आचार्य गुणधर ग्रन्थ बीजपद रूप है और वे बीजपद गम्भीर अर्थ- इस महान आगम ग्रन्थके कर्ता आचार्य प्रवर के द्योतक और प्रमेय-बहुल हैं। इससे प्राचार्य गुणधर हैं, उनकी गुरुपरम्परा क्या है वे कब हुये गुणधरकी उक्त रचना कितने महत्व को है यह उसके हैं और उनका निश्चित समय क्या है ? इसके जानटीका-प्रन्थोंके अध्ययनसे स्पष्ट है जो छह हजार नेका कोई साधन प्राप्त नहीं है और न उनके यथार्थ और ६० हजार श्लोक-प्रमाणको लिये हुए वर्त- समयकी द्योतक खास सामग्री ही अद्यावधि उपलब्ध मानमें उपलब्ध हैं। यद्यपि इस महान ग्रन्थ पर है जिससे उनकी गुरु-परम्परा पर यथेष्ट प्रकाश और भी अनेक विशाल टीका-टिप्पण लिखे गये हैं। डाला जा सके। फिर भी अन्य साधनोंसे उनके परन्तु खेद है कि वे इस समय उपलब्ध नहीं हैं किन्तु समयके सम्बन्धमें विचार किया जाता है। आशा कसायपाहुडकी सरणी-जैसा बीज पदरूप संक्षिप्त- है कि विद्वान उस पर विचार करनेकी कृपा करेंगे। सार एक भी प्राचीन आगम दिगम्बर-श्वेताम्बर वर्तमानमें उपलब्ध श्रुतावतारों और पट्टावसमाजमें अद्यावधि उपलब्ध नहीं है। जैन-समाजका लियोंसे भी आचार्य गुणधरके समय-सम्बन्धी निर्णय सौभाग्य है कि जो यह प्राचीन आगम ग्रन्थ अपनी करनेमें कोई सहायता नहीं मिलती। किन्तु इन्द्रनचूर्णि और जयधवला टीकाके साथ उपलब्ध हैं। न्दीने तो अपने श्रुतावतार में यह बात साफ तौरसे ___ कसाय-पाहुडका दूसरा नाम 'पेज्जदोस-पाहुड' सूचित की है कि हमें गुणघर और धरसेनाचार्यकी है। 'पेज्ज' शब्दका अर्थ राग (प्रेम) और 'दोस' गुरु-परम्परा ज्ञात नहीं है; क्योंकि उसके बतलाने शब्दका अर्थ द्वाप होता है। अतः जिसमें राग-दूष, वाले मुनिजनोंका इस समय अभाव है । इससे क्रोध, मान. माया और लोभादिक दोषोंकी उत्पत्ति. इतना स्पष्ट हो जाता है कि गुणधराचार्यकी परस्थिति, तज्जनित कर्मबन्ध और उनके फलानुभवन म्परा अत्यन्त प्राचीन थी, इसीसे लोग उसे भूल के साथ-साथ उन रागादि दोषोंको उपशम करने गये । प्राकृत पट्टावलीसे ज्ञात होता है कि पुण्डवर्धन दबाने. उनकी शक्ति घटाने. क्षीण करने अथवा नगरके आचार्य अहंदुबलीने जो अष्टांग महानिमि आत्मामेंसे उनके अस्तित्वको सर्वथा मिटा देने, त्तके वेत्ता और शिष्योंके निग्रह-अनुग्रह करने में नृतन बन्ध रोकने और पूर्व में संचित 'कषाय-मल- ४ तदन्वयकथकागम-मुनिजनाभावात् चक्र' को क्षीण करने-उसका रस सुखाने और -इन्द्रनन्दि श्रुतावतार

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