Book Title: Anand Pravachan Part 09
Author(s): Anand Rushi, Shreechand Surana
Publisher: Ratna Jain Pustakalaya

View full book text
Previous | Next

Page 13
________________ अनुक्रमणिका [ आनन्द-प्रवचन : भाग ६] २१. सत्यशरण सदैव सुखदायी शरण कब और किसकी ? १, सत्य की शरण ही क्यों ? ४, सत्य की शरण में जाने पर परिपूर्णकाम ७, सत्यशरण : कष्ट हरण ६, अपराधी के सत्य की शरण में जाने का चमत्कार ११, सत्यशरण से निर्भयता का संचार १२, सत्य की शरण में जाने से आध्यात्मिक लाभ १३, व्रत भंग होने पर भी सत्यनिष्ठा का प्रभाव १३, सत्यशरण : विश्वसनीयता का कारण १४, राजनीति में भी सत्यशरण का प्रभाव १५, सत्य : साधनाजीवन का मूलाधार १६, सत्यशरण कैसे ग्रहण करें १७ । २२. दु.ख का मूल : लोभ लोभ क्या है ? १६, लाभ और लोभ में सम्बन्ध १६, कपिल ब्राह्मण का दृष्टान्त २०, लोभ : दुःखों का मूल २१, लोभी की हृदयभूमि रेगिस्तान के समान २२, मम्मण श्रेष्ठी का दृष्टान्त २४, अतिलोभी आत्महत्या तक कर बैठता है २६, अतिलोभी लोभवश दूसरों के पापों को ढोता है २६, लोभवश पुत्रमरण आदि का भयंकर दुःख पाया २७, लोभ ही द्रोह का कारण बनता है २८, लोभ : धर्म विनाशक ३१, लोभ से स्वास्थ्य और आयु पर गहरा प्रभाव ३३, दुःखनिवारण के लिए लोभवृत्ति दूर करो ३४ । २३. सुख का मूल : सन्तोष सुखी जीवन की परख कैसे ३५, सुख का रहस्य : धनादि पदार्थों में सुख नहीं ३६, मनुष्य के दुःख का कारण : तृष्णा ३६, Jain Education International १-१८ For Personal & Private Use Only १६-३४ आनन्द प्रवचन भाग ८ में गौतम कुलक के प्रवचन १ से २० तक छप गये हैं । समस्त ग्रन्थ की प्रवचन संख्या अनुक्रम से चले अतः यहाँ पर प्रवचन संख्या २१ से ४० तक भाग ९ में दी गई है। ३५-५६ www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 ... 434