Book Title: Anand Lahari
Author(s): Pandurang V Athawale
Publisher: Sadvichar Darshan Trust

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Page 10
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org 2 स्वदीयं सौन्दर्य निरतिशय मालोक्य परया भियैवासीद्गङ्गा जलमयतनुः शैलतनये । तदेतस्यास्तस्माद्वदनकमलं वीक्ष्य कृपया प्रतिष्ठामातन्वन्निजशिरसिवासेन गिरिशः ॥ १८॥ विशालश्रीखण्डद्रवमृगमदाकीर्णघुसृणप्रसूनव्यामिश्रं भगवति तवाम्यङ्गसलिलम् । समादाय स्रष्टा चलितपदपांसून्निजकरैः समाधते सृष्टिं विबुधपुरपं केरुहदृशाम् ॥ १९ ॥ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वसन्ते सानन्दे कुसुमितलताभिः परिवृते स्फुरन्नानापद्मे सरसि कलहंसालिसुभगे । सखीभिः खेलन्तीं मलय पवनान्दोलितजले स्मरेद्यस्त्वां तस्य ज्वरजनितपीडापसरति ॥ २० ॥ इति श्रीमच्छङ्कराचार्यविरचिता: आनन्दलहरी सम्पूर्णा । For Private and Personal Use Only

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