Book Title: Ambalalji Maharaj Abhinandan Granth
Author(s): Saubhagyamuni
Publisher: Ambalalji Maharaj Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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( १५ ) गम्भीर तात्त्विक निबन्धों के साथ सामान्य विषय-वस्तु का संयोजन हमें जान बूझकर करना पड़ा।
हम यह अच्छी तरह समझते हैं कि जिस धरती पर इस ग्रन्थ का विमोचन होने जा रहा है वहाँ के धरापुत्रों में से अधिक तो सामान्य ग्राही ही हैं।
ग्रन्थ का सर्वाधिक सदुपयोग हो, इस दृष्टि से इसमें वैशिष्ट्य और सामान्य का समन्वित प्रयास है।
छठे 'काव्य-कुसुम' खण्ड में कुछ पुरानी ढालें, कुछ अन्य ऐसी सामग्री है जिनका ऐतिहासिक महत्त्व है । गुरुदेव श्री के नित्य स्मरणीय पद भी हैं । मेरे सहयोगी
मैं बहुत ही व्यस्त वातावरण ओड़कर चलने वालों में से हूँ। प्रवचन, विहार, साध्वाचार सम्बन्धी कार्यों के उपरान्त जो समय मिल पाया है उसमें भी अनेक बाधाएँ प्रायः बनी रहती हैं । ऐसी स्थिति में ग्रन्थ सम्पादन, लेखन जैसे कार्य को सम्पन्न करना मेरे लिए तो कम से कम बड़ा कठिन था, किन्तु फिर भी कार्य हुआ तो यह श्रेय मेरे समस्त सहयोगियों का है।
श्री पूज्य मुनि श्री महाराज जो पिछले एक वर्ष से गुरुदेव श्री की सेवा में हैं मुझे बराबर प्रेरित करते रहे । श्री इन्द्रमुनि जी, श्री मगन मुनिजी का अविस्मरणीय सहयोग रहा ।
__ श्री मदन मुनिजी की प्रारम्भ से ही बड़ी जोरदार प्रेरणा रही। सामग्री उपलब्ध कराने में भी इन्होंने सहयोग किया।
श्री दर्शन मुनिजी ने सेवा-सम्बन्धी कार्य कर सहयोग दिया। परम विदुषी महासती जी श्री प्रेमवती जी के . प्रेरणात्मक सहयोग को मैं विस्मृत नहीं कर सकता।
यह लिखते हुए बराबर मुझे याद आ रही है पूज्य मरुधर केसरी मिश्रीमल जी महाराज की, जिनके प्रेरणात्मक आशीर्वाद से मेरी सक्रियता बनी रही।।
स्नेही साथी तपस्वी श्री रजत मुनिजी को मैं नहीं भूल सकता, जो बराबर प्रगति के विषय में जानकारी लेते रहे और प्रेरणा देते रहे ।
सम्पादक मण्डल में से जिनका मुझे भरपूर सहयोग मिला, उनमें समर्थ विद्वान श्री देवेन्द्र मुनिजी शास्त्री, श्री श्रीचन्द्रजी सुराणा 'सरस' और डा० श्री नरेन्द्र जी भानावत हैं ।
श्री देवेन्द्र मुनिजी ने "जितना सह्योग चाहिए उतना लीजिये" लिखकर मेरी प्रेरणाओं में नवीन स्फुरणाएँ भर दी।
डा० भानावत ने अच्छी सामग्री उपलब्ध कराकर सहयोग दिया तो श्री 'सरस' जी को तो आप इस सारे कार्य में 'सर्वेसर्वा' ही मान लीजिये, सामग्री उपलब्ध कराने से लेकर संयोजन एवं मुद्रण साज-सज्जा तक उनका सहयोग पूरी तरह मेरे साथ रहा ।
अन्त में मैं अभिनन्दन ग्रन्थ प्रकाशन समिति तथा अभिनन्दन समारोह समिति के पदाधिकारियों, कार्यकर्ताओं को साधुवाद देता हूँ जिन्होंने समय-समय पर उपस्थित हो, यथा समय कार्य सम्पन्न हो जाये इस लक्ष्य से भावपूर्ण आग्रह किये । और यह ग्रन्थ अभिनन्दन समारोह की शोभा बढ़ाने योग्य बन सका...आशा है विद्या-रसिक पाठकों के मन को भी चिर कालिक परितृप्ति मिलती रहेगी, बस यही शुभाशा...।
-मुनि 'कुमुद
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