Book Title: Agam Sutra Satik 39 Mahanishith ChhedSutra 6
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan

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Page 14
________________ अध्ययन :१, उद्देशक: गोयम नंते चिट्ठति जे अनादीए ससल्लिए । निय-भाव-दोस-सल्लाणं भुंजते विरसं फलं ॥ मू. (११६) चिट्ठइसंति अञ्जावि तेनं सल्लेण सल्लिए । अनंतं पि अनागयं कालं तम्हा सलं न धारए खणं मुणि ति॥ मू. (११७) गोयम समणीण नो संखा जाओ निक्कलुस-नीसल्ल-विसुद्ध-सुनिम्मल-विमलमानसाओअन्झप्पविसोहिए आलोइत्ताणसुपरिफुडंनीसंकंनिखिलंनिरावयवंनिय-दुच्च-रियमादीयं सव्वं पिभावसल्लंअहारिहंतवो-कम्मंपायच्छित्तमनुचरित्ताणंनिद्दोयपाव-कम्म-मल-लेव-कलंकाओ उप्पन्न-दिव्व-वर-केवलनाणाओ महानुभागाओ महायसाओ महा-सत्त-संपन्नाओ-सुगहियनामधेजा अनंतुमत्तम-सोक्ख-मोक्खं पत्ताओ मू. (११८) कासिंचि गोयमा नामे पुन्न-भागाण साहिमो। जासिमालोयमाणीणं उप्पन्नं समणीण केवलं ॥ हा हा हा पाव-कम्मा हं पावा पावमती अहं। पाविट्ठाणं पिपावयरा हा हा हा दुट्ठचिंतिमो॥ मू. (१२०) हा हा इत्थि भावं मे ताविह-जम्मे उवढियं । तहावीन धोर-वीरुग्गं कटुंतव-संजमंधरं ।। मू. (१२१) अनंता-पाव-रासीओ सम्मिलियाओ जया भवे । तइया इत्यित्तणं लब्भे सुद्धं पावाण कम्माण । मू. (१२२) एगत्थपडी भूताणं समुदय तनुतं तह। करेमि जह न पुणो इत्यिहहोमि केवलि ॥ मू. (१२३) दिढे विन खंडामि सीलं हं समणि केवलि । हा हा मनेन मे किं पि अत्त-दुहत्त-चिंतियं ।। मू. (१२४) तमालोइत्ता लहुं सुद्धिं गेण्हे हं समणि-केवलि। दखूण मन्झलावन्नं रूवं कति दित्तिं सिरिं॥ मू. (१२५) मा नर-पयंगाहमा-जंतु खयं अनसनं समणिय केवली। वातंमोत्तूण नो अन्नो निच्छयं महतनूच्छीवे ॥ मू. (१२६) छक्काय-समारंभं न करे हं समणि-केवली। . पोग्गल-कक्खेरु-गुझंतं नाहिं जहनंतरेताह ।। मू. (१२७) जननीए विनं दंसेमि सुसंगुत्तंगोवंगा समणी य केवली । बहु-भवंतर-कोडीओ घोरं गब्म-परंपरं ।। मू. (१२८) परियटुंतीए सुलद्धं मे नाण-चारित-संजुयं । मानुसजम्मं स-सम्मत्तं पाव-कम्म-खयंकरं । मू. (१२९) ता सव्व-भाव-नीसल्ला आलोएमिखणे खणे। पायच्छित्तमनुट्ठामि बीयं तं न समारमं॥ मू. (१३०) जेनागच्छति पच्छित्तं वाया मनसा य कम्मुणा। For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org

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