Book Title: Agam Sutra Satik 39 Mahanishith ChhedSutra 6
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan
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१८६
महानिशीथ-छेदसूत्रम् -४/-/६७८ स्थ तुच्छहणे ते अनेग-रित्य संघाएणं विक्किणंति एतेनं विहाणेणं गोयमाते रयणदीव-निवासिणो मनुया ताओ अंतरंड-गोलियाओ गेहंति से भयवं कहं ते वराए तं तारिसं अचंतघोर-दारुणसुदूसहंदुक्ख-नियरंविसहमाणो निराहार-पानगेसंवच्छरंजावपाणे विधारयंतिगोयमा सकयकम्मानुभावओ सेसं तु पण्हावागरणवुद्ध विवरणादवसेयं ।
म. (६७९) से भयवंतओ वी मए समाणे से सुमती जीवे कहं उववायं लभेजा गोयमा तत्थेव पिसंतावदायगथले तेनेव कमेणं सत्त-भवंतरे तओविदुट्ठ-साणेतओविकण्हे तओ विवाणमंतरे तओ विं लिबत्ताए वणस्सईए तओ विमणसुएसुंइस्थित्ताए तओ विछट्ठीए तओ वि मनुयत्ताए कुट्ठी तओ विवानमंतरे तओ वि महाकाए जूहाहिवती गए तओ विमरिऊणं मेहुणासत्तेअनंतवणप्फतीएतओ विअनंत-कालाओमनुएसुसंजाएतओ विमनुए महानेमित्ती तओ विसत्तमाए तओ वि महामच्छे चरिमोयहिम्मितओ सत्तमाए तओ विगोणे तओ वि मनुए तओ वि विडवकोइलियं तओ विजलोयं विमहामछे तओ वितंदुलमच्छे तओ विसत्तमाए तओ विरासहे तओ विसाणे तओ वि किमी तओ विदुरे तओ वितेउ-काइए तओ वि कुंथू तओ वि महुयरे तओ वि चड़ए तओ विउद्देहियंतओ वि वणप्फतीएतओ विअनंत कालाओमनुएसुइत्थीरयणं तओवि छट्ठीए तओ कणेरु तओ वि वेसामंडियं नाम पट्टणं-तत्योवज्झाय-गेहासन्ने लिबत्तेणं वणस्सई तओ वि मनुएसुं खुज्जित्थी जआ वि मनुयत्ताए पंडगे तओ वि मनुयत्तेणं दुग्गए तओ वि दमए तओ वि पुढवादीसुंभव-काय-हितीए पत्तेयं तओमनुए तओ बाल-तवस्सी तओवाणमंतरेतओ विपुरोहिए तओविसत्तमीएतओ विमच्छेविसत्तमाए तओविगोणे तओ विमनुए महासम्मद्दिट्टी ए अलविरए चक्कहरे तओ पढमाए तओ वि इब्भे तओ वि समणे अनगारे तओ वि अनुत्तरसुरे तओ वि चक्कहरे-महा-संघयणी भवित्ता णं निम्विन्न-काम-भोगे जहोवइट्ट संपुन्नं संजमं काऊण गोयमा सेणं सुमइ-जीवे परिनिव्वुडेजा।
मू. (६८०)तहा यजेभिक्खूवा भिक्खूणीवा परपासंडीणं पसंसं करेज्जाजेया विणंनिण्हगाणं पसंसं करेजा जेणं निण्हगाणंअनुकूलं भासेजा जेणंनिण्हगाणंआययणंपविसेजा जेणंनिण्हगाणं गंध-सत्थ-पयक्खरं वा परूवेजा जेणं निण्हगाणं संतिए काय-किलेसाइए तवे इवा संजमे इ वा नाणे इ वा विन्नाणे इवा सुए इ वा पंडिच्चे इ वा अभिमुह-मुद्ध-परिसा-मज्झ-गए सलाहेजा से वि यणं परमाहम्मिएसुं उववजेजा जहा सुमती। __ मू. (६८१) से भयवंतेनं सुमइ जीवेणं तत्कालं समणतं अनुपालियंतहा वि एवंविहेहिनारयतिरिय-नरामर विचित्तोवाएहिं एवइयं संसाराहिंडणंगोयमाणंजमागम-बाहाएलिगग्गहणं कीरइ तंदंभमेव केवलं सुदीहसंसारहेऊभूयं नोणं तं परियायं संजमे लिक्खइतेनेव य संजमंदुक्करं मन्ने अन्नं च समणत्ताए एसे य पढमे संजम-पए जंकुसील-संसग्गी-निरिहरणं अहाणं नो निरिहरेता संजममेव न ठाएजाता तेनं सुमइणा तमेवायरियं तमेव पसंसियतमेव उस्सप्पियंतमेव सलाहियं तमेवाणुट्टियं ति एयं च सुत्तमइक्कमित्ताणं एत्थं पए जहा सुमती तहा अन्नेसिमवि सुंदर-विउरसुदंसण-सेहरणीलभद्दा-सभोमे य-खग्गधारीतेनग-समण-दुईत-देवरक्खिय-मुनि-नामादीणं को संखाणं करेजा ता एयमटुं विइत्ताणं कुसीलसंभोगे सब्बहा वाजणीए।
मू. (६८२) से भयवं किं ते साहुणो तसंसणं नाइल-सहगस्स छंदेणं कुसीले उयाहु आगम
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