Book Title: Agam Sutra Satik 39 Mahanishith ChhedSutra 6
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan
View full book text
________________
२०४
महानिशीथ-छेदसूत्रम् -५/-१८२६
संतिए इ वा तदहुत्तं गच्छेज वा अवलोइज्ज वा पलोएज वा वेसग्गहणे ढोइज्जमाणे कोई उप्पाए इ वा असुहे दोन्निमित्ते इ वा भवेज्जा से णं गुयत्ये गणी अन्नयरे इ वा मयहरादी महया नेउन्नेणं निरूवेजा जस्सणंएयाइंपरतक्केज्जा सेणं नोपवावेज्जा सेणं गुरु-पडिणीए भवेशा सेणं निद्धम्मसबले भवेज्जा सेणं सबहा सव्व-पयारेसुणं केवलं एगंतेनंअयज-करणुज्जए भवेजासेणंजेणंवा तेन वा सुएण वा विन्नाणेण वा गारविए भवेज्जा से णं संजई-वग्गस्स चउत्थ-वयखण्डण-सीले भवेजा से णं बहुरूवे भवेजा। __ मू. (८२७) से भयवं कयरेणं से-बहु-रुवे-वुच्चइ जे णं ओसन्न-विहारीणं ओसन्ने उज्जयविहारीणं उज्जय-विहारी निद्धम्म-सबलाणं निद्धम्म-सबले बहुरूवी रंग-गए चारणे इव नडे। मू. (८२८)खणेण रामे खणेण लक्खणे खणेण दसगीव-रावणे खणेणं, टप्पर-कणण ।
दंतुर-जरा-जुन्न-गत्ते पंडर-केस-बहु-पवंच भरिए विदूसग॥ मू. (८२९) खणेणं तिरियं च जाती वानर-हनुमंत-केसरी ।
___जहणं रूस गोयमा तहाणं से बहुरूवे ॥ मू. (८३०) एवं गोयमा जे णं असई कयाई केई चुक्क-खलिएणं पव्वावेज्जा से णं दूरद्धाण ववहिए करेज्ना से णं सन्निहिए नो धरेज्जा से णं आयरेणं नो आलवेजा से णं भंडमत्तोवगरणेणं आयरेणं नोपडिलाहावेज्जा सेणंतस्स गंथसत्यं नो उद्दिसेज्जा सेणं तस्स गंथ-सत्यं नोअनुजाणेज्जा से णं तस्स सद्धिं गुज्झ-रहस्सं वा अगुज्झ-रहस्सं वा नो मंतेजा एवं गोयमा जे केई एय दोसविप्पमुक्केसेणंपव्वावेजातहाणंगोयमा मिच्च-देसुप्पनं अणारियं नो पव्वावेज्जा एवं वेसा-सुयं नो पव्बावेजा एवंगणिगंनोपवावेजा एवंचक्खु-विगलंएवं विगप्पिय-कर-चरणएवं छिन्न-कन्ननासोटुं रूवं कुट्ठ-वाहीए गलमाण-सडहडंतं रूवं पंगुं अगंगमं मूर्य बहिरं एवं अचुक्कड-कसायं एवं बहु पासंड-संसट्ठएवंधन-राग-दोस-मोह-मिच्छत-मल-खवलियंएवं उज्झियउत्तयंरूवंपोराण निक्खुड एवं जिनालगाई बहु देव-बलीकरण-भोइयं चक्कयरं एवं नड-नट्ट-छत्त-चारणं एवं सुयजडुंचरणकरण-जडं जडुकायं नो पव्वावेज्जा एवं तु जाव एव तु जाव णं नाम-हीणं धाम-हीनं कुल-हीनं बुद्धि-हीनंपन्ना-हीनंगामउड-मयहरंवा गामउड-मयहरसुयंवाअन्नयरंवानिंदियाहम-हिनजाइयं वा-अविन्नाय कुल-सहावं वा गोयमा सव्वहा नो दिकावे नो पव्वावेज्जा एएसितुंपयाणं अन्नयरपए खलेज्जा जो सहसा-देसूण-पुब्बकोडी-तवेणं गोयमा सुज्झेज वा न वा वि। मू. (८३१) एवं गच्छववत्थं तह त्ति पालेत्तु तहेव जंजहा भणियं ।
रय-मल-किलेस-मुक्के गोयम मोक्खं गएऽ नंतं ।। मू. (८३२) गच्छंति गमिस्संतिय ससुरासुर-जग-नमंसिए वीरे।
भुयसेक्क-पायड-जसे जह भणिय-गुणदिए गणिणो || मू. (८३३) से भयवंजेणं केइ अमुणिय-समय-सब्भावे होत्था विहिए इवा अविहिए इवा कस्स य गच्छायारस्सय मंडलि-धम्मस्स वा छत्तीसइविहस्सणं सप्पोय-नाण-दंसण-चरित्त-तववीरियायारस्स वा मनसा वा वायाए वा कहिं चि अन्नयरे ठाणे केई गच्छाहिवई आयरिए इवा अंतो विसुद्धा परिणामे वि होत्था-णंअसई चुकेज वाखलेज वापरूवेमाणे वा अनुढेमाणे वा सेणं आराहगे उयाहु अनाराहगे गोयमा अनाराहगे से भयवं केणं अटेणं एवं वुच्चइ जहा णं गोयमा
www.jainelibrary.org
Jain Education International
For Private & Personal Use Only

Page Navigation
1 ... 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170