Book Title: Agam Sutra Satik 39 Mahanishith ChhedSutra 6
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan
View full book text
________________
२२४
महानिशीथ-छेदसूत्रम् -६/-19१४० ___ नारय-तिरिय कुमानुस्से तं सोचा को धिई लभे।।। मू. (११४१) सेभयवंकाउन सारज्जजिया किंवातीए अगीयत्य-अत्त-दोसेणं वाया-मेत्तेणि पि पाव कम्मं समज्जियं जस्सणं विवागऽयं सोऊणं नो धिई लभेजा गोयमाणं इहेव भारहे वासे भद्दो नामआयरिओ अहेसि तस्स यपंचसए साहूणंमहानुभागाणं दुवालस सए निग्गंथीणंतत्थ य गच्छे चउत्यरसियं ओसावणं तिदंडोऽचित्तं च कढिओदगं विप्पमोत्तूणं चउत्थं न परिभुजई अन्नयारजानामाएअज्जियाए पुवकय-असुह-पाव-कम्मोदएण सरीरंग कुह-वाहीएपरिसडिणं किमिएहिंसुमद्दिसिउमारद्धं अहअन्नया परगलंत-पूइ-रुहिरतणूंतरजज्जियंपासियाताओ संजईओ भणंति जहा हला हला दुक्करकारिंगे किमेयं ति ताहे गोयमा पडिभणियं तीन महापावकमाए भग्गलक्खण-जम्माए रज्जज्जियाए जहा-एएण फासुग-पानगेणं आविजमाणेणं विन8 मे सरीरगं तिजावेयंपलवेतावणंसंखुहियंहिययंगोयमा सव्व-संजइ-समूहस्स जहाणंविवजामोफासुगपानगं तितओ एगाए तत्य चिंतियं संजतीए जहाणं-जइ संपयं चेव ममेयं सरीरगंएगनिमिसब्अंतरेव पडिसडिऊणं खंडहियं हिययं गोयमा सव्व-संजइ-समूहस्सजहाणं विवज्जामो फासुगपाणगंति तओ एगाए तत्थ चिंतियं संजतीए जहा णं-जइ संपयं चेव ममेयं सरीरगं एगनिमिसअंतरेव पडिसडिऊणं खंडहियं हिययं गोयमा सव्व-संजइ-समूहस्स जहाणं विवज्जामो फासुगपाणंग ति तओ एगाए तत्थ चिंतियं संजतीए जहा णं-जइ संपयं चेव ममेयं सरीरगं एगनिमिसअंतरेव पडिसडिऊं खंडखंडेहिं परिसडेजा तहावि अफासुगोदगं एत्थ जम्मे न परिभुंजामि फासुगोदगंन परिहरामिअन्नंच-किं सचमेयंजफासुगोदगेणं इमीए सरीरगं विनटुंसव्वहान सबमेयंजओणं पुवकय-असुह-पाव-कम्मोदएणं सव्वमेवविहं हवइ त्ति सुटुयरं चिंतिउ पयत्ता जहाणंजहा-भो पेच्छ पेच्छ अन्नाण-दोसोवहयाए दढ-मूढ-हिययाए विगयलज्जाएइमीए महापावकम्माए संसारघोर-दुक्ख-दायगंकेरिसंदुट्ठवयणं गिराइयंजममकन्न-विवरेसुंपिनो पविसेजत्तिजओ भवंतरकएणं असुह-पाव-कम्मोदएणं जं किंचि दारिद्द-दुक्ख-दोहग्ग-अयसब्भक्खाण-कुट्ठाइ-वाहिकिलोस-सन्निवायं देहम्मिं संभवइ न अन्नइ तिजे णं तु एरिसमागमे परढिजइ तंजहा। मू. (११४२) को देइ कस्स दिज्जइ विवियं को हरइ हीरए कस्स।
सयमप्पणो विढत्तं अल्लियइ दुहं पि सोक्खं पि॥ म. (११४३) चिंतमानीए चेव उप्पन्नं केवलं नाणं कया देवेहिं केवलिमहिमा केवलिणा वि नर-सुरासुराणं पणासियं संसय-तम-पडलं अज्जियाणं च तओ भत्तिब्भपनिब्भराए पणाम-पुव्वं पुट्ठो केवली रज्जाए जहा भयवं किमट्टमहं एमहंताणं महा-वाहि-वेयणाणं भायणं संवुत्ता ताहे गोयमा सजल-जलहर-सुरदुंदुहि-निग्घोस-मनोहारि-गंभीर-सरेणं भणियं केवलिणा जहा-सुणसु दुक्कर-कारिए जं तुज्झ सरीर-विहडण-कारणं ति तए रत्त-पित्त-दूसिए अब्भंतरओ सरीरगे सिणिद्धहार-माकंठाएकोलियग मीसं परिभुत्तं अनंच एत्थसएसाहु-साहुणीणंतहा विजावएएणं अच्छीणि पक्खालिजंतितावइयंपिबाहिर-पाणगंसागारियट्ठाय निमित्तेणाविनोणंकयाइपरिभुजइ तए पुनगोमुत्तं पडिग्गहणगयाए तस्स मच्छियाहिं भिणिहिणित-सिंघाणग-लाला-लोलिय-वयणस्स णंसडासुयस्सबाहिर-पाणगंसंघट्टिऊणं मुहं पक्खालियं तेन यबाहिर-पाणय-संघट्टण-विराधनेनं ससुरासुर-जग-वंदाणंपिअलंघणिज्जागच्छ-मेराअइक्कमियातंचनखमियं तुझपवयण-देवयाए
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170