Book Title: Agam Sutra Satik 39 Mahanishith ChhedSutra 6
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan

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Page 145
________________ २६४ महानिशीथ - छेदसूत्रम् - ८ (२)/-/१४९८ चाउरंगस्स बलस्स विसेस ओणं तस्स सुगविय नाम- गहणस्स पुरिस-सीहस्स सीलसुद्धस्स कुमारवरसे ति पउत्तिं आणेह जेमाहं निव्वुओ भवेज्जा ताहे नरवइणो पणामं काणं गोयमा गए ते निउत्तपुतरिसे जाव णं तुरियं चल-चवल-जइण-कम-पवण वेगेहिं णं आरुलहिऊणं जच्च-तुरंगमेहिं निउंजगिरिकंदरुद्देस - परिक्काओ खणेण पत्ते रायहाणि दिट्ठो य तेहिं वामदाहिणभुया-पल्लवेहिं वयणं सिरोरुदहे विलुंपमाणो कुमारो तस्स य पुरओ सुवन्नाभरण-नेवच्छादस - दिसासु उज्जोयमाणी जय जय सद्दमंगल-मुहलारयहरण- वावडोभयकर-कमल-विरइयंजली देवया तं च दवणं विम्हिय भूयमणे लिप्प-कम्प निम्मविए एयावसरम्मि उ गोयमा सहरिस-रोमंच-कंचुपुलइयसरीराए नमो अरहंताणं ति समुच्चरिऊणं भणिरे गयणट्टियाए पवयण देवयाए से कुमारे तं जहा - जो दलइ मुट्ठि-पहरेहि मंदरं धरइ करयले वसुहं । सव्वोदहीण वि जलं आयरिसइ एक्क घोट्टेणं ।। पू. (१४९९) भू. (१५००) टाले सग्गाओ हरिं कुणइ सिवं तिहुयणस्स वि खणेणं । अक्खंडिय सीलाणं कुद्धो वि न सो पहुप्पेज्जा ।। मू. (१५०१ ) अहवा सो चिय जाओ गणिज्जए तिहुयणस्स वि स वंदो । पुरिसो वि महिलिया वा कुलुग्गओ जो न खंडए सीलं ॥ मू. (१५०२) परम पवित्तं सप्पुरिस सेवियं सयल-पाव-निम्महणं । सव्युत्तम - सुक्ख-निर्हि सत्तरसविहं जयइ सीलं ।। मू. (१५०३) ति भाणिऊणं गोयमा झत्ति मुक्का कुमारस्सोवरिं कुसुमवुट्टि पवयण देवयाए पुणो वि भणिउमाढत्ता देवया तं जहा मू. (१५०४) देवस्स देंती दोसे पवंचिया अत्तणो स-कम्मेहिं । - न गुणेसु ठर्वितऽ प्पं मुहाई मुद्धाए जोएंति ॥ मू. (१५०५) मज्झत्थभाववत्ती सम-दरिसी सव्व-लोय-वीसासो । निक्खवय परियत्तं दिव्वो न करेइ तं ढोए ।। मू. (१५०६ ) ता बुज्झिऊण सव्वुत्तमं जणा सील-गुण-महिड्डीयं । तामसभावं चिच्चा कुमार-पय-पंकयं नमह ॥ मू. (१५०७) त्ति भाणिऊणं अद्दंसणं गया देवया इति ते छइल्ल-पुरिसे लहुं च गंतूण साहियं तेहि नरवइणो तओ आगओ बहु-विकप्प - कल्लोल- मालाहि णं आउरिज्जमाणं-हियय-सागरो हरिसविसाय-वसेहिं भीऊडुपायातत्थ - चकिर - हियओ सणियं गुज्झ सुरंग-खडक्किया-दारेणं कंपंत सव्वगत्तो महया को ऊहल्लेणं कुमार- दंसणुक्कंठिओ य तमुद्देसं दिट्ठो य तेनं सो सुगहियनामधेजो महायसो महासत्तो महानुभावो कुमार महरिसी अपडिवाइ महोही पच्चएणं साहेमाणो संखाइयाइभवाणुहूयं दुक्ख सुहं सम्मत्ताइलंभं संसार-सहावं कम्मबंध -द्विती- विमोक्खमहिंसा-लक्खणमणनगारे वयरबंधे नरादीणं सुहनिसन्नो सोहम्माहिवई धरिओवरिपंडुरायवत्तो ताहे य तं अदिट्ठपुवं अरगं दणं पडिबुद्धो सपरिग्गहो पव्वइओ य गोयमा सो राया परचकाहिवई वि एत्थतरम्मि पहय- सुस्सर - गहिर-गंभीर- दुदिभि-निग्घोस- पुव्वेणं समुग्घुट्टं चउव्विहं देवनि-काएणं (तं जहा) - मू. (१५०८) कम्मट्ठे-गठि-मुसुमूरण जय जय परमेट्ठी महायस । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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