Book Title: Agam Sutra Satik 39 Mahanishith ChhedSutra 6
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan

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Page 140
________________ अध्ययनं ८, (चूलिका-२ ) २५९ चभो निसियसुतिक्खदारुण-करवालधाराए पायव्वा य णं भो सुहुय - हुय वह जालावली भरीयवे णं भो सुहुम-पवण-कोत्थलगे गमियव्वं च णं भो गंगा-पवाह-पडिसोएणं तोलेयव्वं भो साहसतुलाए मंदर-गिरं जेयब्वे य णं भो एगागिएहिं चैव धीरत्ताए सुदुजए चाउरंग-बले विधेयव्वा णं भो परोप्पर - विवरीय- भमंत - अट्ठ- चक्कोवरिं वामच्छिम्मि उ धीउल्लिया गहेयव्वणं भो सयल-तिहुयणविजया निम्मला जस-कित्ति-जय पडागा ता भो भो जणा एयाओ धम्मानुट्ठाणाओ सुदुक्करं नत्थि किंचि मन्नं ति । मू. (१४८५) पू. (१४८६) बुज्झति नाम भारा ते च्चिय उज्झति वीसमंतेहिं । सील-भरो अइगरुओ जावज्जीयं अविस्सामो ॥ ता उज्झिऊण पेम्मं घरसारं पुत्त-दविणमायं । नगा अविसाई पयरह सव्वुत्तमं धम्मं ॥ नो धम्मस्स भडक्का उक्कंचण-वंचणा च ववहारो । निच्छम्मो भो धम्मो मायादी - सल्ल - रहिओ हु । भूएसु जंगमत्तं तेसु वि पंचेंदियत्तमुक्कासं । तेसु वि य मानुसत्तं मनुयत्ते आरिओ देसो ।। मू. (१४८७) पू. (१४८८) मू. (१४८९) मू. (१४९०) पू. (१४९१) कुलं पहाणं कुले पहाणे य जाई - मुकोसा। तीए रूव-समिद्धी रूवे य बलं पहाणयरं । होइ बले चिय जीयं जीए य पहाणयं तु विन्नाणं । विन्नाणे सम्मत्तं सम्पत्ते सील-संपत्ती ॥ सीले खाइय-भावो खाइय-भावे य केवलं नाणं । केवलिए पडिपुन्ने पत्ते अयरामरो मोकखो || मू. (१४९२ ) न य संसारम्मि सुहं जाइ-जरा-मरण- दुक्ख - गहियस्स । जीवस्स अस्थि जम्हा तम्हा मोक्खो उवाओ उ ॥ आहिंडिऊण सुइरं अनंतहुत्तो हु जोणि- लक्खेसु । पू. (१४९३) मू. (१४९४) तस्साहण - सामग्गी पत्ता भो भो बहू इण्हि ॥ ता एत्य जं न पत्तं तदत्य भो उज्जमं कुणह तुरियं । विबुह जण निंदियमिणं उज्झह संसार- अनुबंधं ॥ मू. (१४९५) लहिई भो धम्मसुइं अनेग भवकोडि लक्खेसु वि दुल्लई । नाह सम्मं ता पुनरवि दुल्लहं होही ॥ मू. (१४९६) लद्धेल्लियं च बोहिं जो नाणुट्टे अणागयं पत्थे । सो भो अन्नं बोहिं लहिही कयरेणं मोल्लेण ।। मू. (१४९७) जाव णं पुव्व-जाइ- सरण - पच्चएणं सा माहणी इयं वागरेइ ताव णं गोयमा पडिबुद्धामसेसं पिबंधुयणं बहु-नागर-जणो य एयावसरम्मि उ गोयमा भणियं सुविदिय-सोग्गइपहेणं तेन गोविंदमाहणेणं जहा णं-धिद्धिद्धि वंचिए एयावंतं कालं जतो वयं मूढे अहो नु कट्ठमन्नाणं दुव्वित्रेयमभागधिजेहिं खुद्द सत्तेहिं अदिट्ठ-घोरुग्ण-परलोग पश्चवाएहिं अत्ताभिणिविट्ठ-दिट्ठीहिं For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International

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