Book Title: Agam Sutra Satik 39 Mahanishith ChhedSutra 6
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan
View full book text
________________
२६०
महानिशीथ - छेदसूत्रम् - ८(२)/-/१४९७
पक्खवाय- मोह- संधुक्किय माणसेहिं राग-दोसो - वहयबुद्धिहिं परं तत्तधम्मं अहो सज्जीवेणेव परिमुसिए एवइयं काल - समयं अहो किमेस णं परमप्पा भारिया छलेणासि उ मज्झभारिया-छलेणासि उ मज्झ गेहे उदाहुणं जो सो निच्छिओ मीमंसएहिं सव्वन्नू सोच्चि ए सूरिए इव संसय तिमिरावहारिता णं लोगावभासे मोक्ख- मग्ग-संदरिसणत्थं सयमेव पायडीहुए अहो महाइसयत्थ-पसाहगाओ मज्झं दइयाए वायाओ भो भो जन्नयत्त - विण्हुयत्त-जन्नदेव - विस्सामित्त सुमिचादओ मज्झं अंगया अब्भुट्ठाणारिहा ससुरासुरस्सा विणं जगस्स एसा तुम्ह जननित्ति भो भो पुरंदर-पभितीओ खंडियाओ वियारहणं सोवज्झाय-भारियाओ जगत्तयनंदाओ कसिण-किव्विस निद्दहण-सीलाओ वायाओ पसन्नोज तुम्ह गुरू आराहणेक्क-सीलाणं
परमप्यं बलं जजण-जायणज्झयणाइणा छककम्पाभिसंगेणं तुरियं विनिजिणेह पंचेंदियाणि परिचयहणं कोहाइए पावे वियाणेह णं अमेज्झाइजंबाल-पंक-पडिपुत्रा असुत कलेवरे पविसामो वर्णतं, इच्चेवं अनेगेहिं वेरग्गजननेहिं सुहासिएहिं वागरमाणं तं चोद्दस - विज्जा-ठाण- पारंगभो गोयमा गोविंद-माहणं सोऊइण अच्चंत - जम्म-जरा-मरण-भीरुणो बहवे सप्पुरिसे सख्युत्तमं धम्मं विमरिसिउं समारद्धे तत्थ केइ वयंति जहा एस धम्मो पवरो अन्ने भणति जहा एस धम्मो पवरो जाव णं सव्वेहिं पमाणीकया गोयमा सा जातीसरा माहणि त्ति ताहे तीए य संपवक्खायमहिंसो वक्खियमसंदिद्धं खंताइ-दस-विहं समण-धम्मं दिनंत हेऊहिं च परमपञ्चयं विणीयं तेसिं तु तओ य ते तं माहणि सव्वन्नूमिति काऊणं सुरइय-कर-कमलंजलिणो सम्मं पणमिऊणं गोयमा तीए माहणीए सद्धिं अदीनमानसे बहवे नर-नारि-गणा चेच्चाणं सुहिय-जण मित्त-बंधु-परिवग्ग-गिह-विहवसोक्खमप्प- कालियं निक्खते सासय सोक्ख-सुहाहिलासिणो सुनिच्छियमाणसे समणत्तेणं सयलगुणोह-धारिणो चोद्दस पुव्वधरस्स चरिम-सरीरस्स णं गुणंधर-थविरस्स णं सयासे त्ति एवं च ते गोमा अञ्चंत - घोर-वीर-तव-संजमानुट्ठाण - सज्झाय-झाणाईसुं णं असेस-कम्मक्खयं काऊणं तीए माहणीए सम्मं विहुयरय-मले सिद्धे गोविंदमाहणादओ नर-नारिगणे सव्वे वी महायसे त्ति बेमि ।
मू. (१४९८) से भयवं किं पुन काऊणं एरिसा सुलह-बोही जाया सा सुगहियनामघेज्जा माहणी जीए रूयावइयाणं भव्व-सत्ताणं अनंत-संसार - घोर- दुक्ख संतत्ताणं सद्धम्म- देसणाईहि तु सासयसुह-पयाणपुव्वगमब्भुद्धरणं कयं ति गोयमा जं पुव्वि सव्वभाव-भावंतरंतरेहिणं नीसल्ले आजम्मलोयणं दाऊणं सुद्धभावाए जहोवइट्टं पायच्छित्तं कयं पायच्छित्तसमत्तीए य समाहिए य कालं काऊणं सोहम्पे कप्पे सुरिंदग्गमहिसी जाया तमनु-भावेणं, से भयवं किं से णं माहणी जीवे तब्भवंतरम्मि समणी निग्गंधी अहेसि जे णं नीसल्लमालोएत्ता णं जहोवइट्टं पायच्छित्तं कयं ति गोयमा जेणं से माहणी जीवे से णं तज्जम्मे बहुलद्धिसिद्धी जुए महिड्डीयत्ते सयलगुणाहारभूए उत्तम-सीलाहिट्ठिय-तनू महातवस्सी जुगप्पहाणे समणे अनगारे गच्छाहिवई अहेसि नो णं समणी, से भयवंता कयरेण कम्म-विवागेणं तेमं गच्छाहिवइणा होऊणं पुणो इत्थित्तं समज्जियं ति गोयमा माया पञ्चएणं से भयवं कयरेणं से माया पच्चए जे णं पयणू-कय-संसारे वि सयल-पावाययणा विबुह-जन-निंदिए
सुरहि- बहु- दव्व - घय-खंड-चुन्न- सुसंकरिय-समभाव- पमाण- पाग- निष्पन्न- मोयग-मल्लगे-इवसव्वस्स भक्ने सयल-दुक्ख-केसाणिमालए सयल-सुह- साहणस्स परमपवित्तुमस्स गं अहिंसा
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170