Book Title: Agam Sutra Satik 39 Mahanishith ChhedSutra 6
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan
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अध्ययनं :७, (चूलिका-१)
२५३
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मू. (१४३५) ता पुन तस्स सामग्गी सव्व-कम्म-खयंकरा।
अह होज देव-जोग्गा असुई-गंधं खुदुद्धरिसं। मू. (१४३६) एवं कय-पच्छिते जेणंछजदीव-काय-वय-नियमं ।
दसण-नाण-चरित्तं-सीलंगे वा तवंगे वा ।। मू. (१४३७) कोहेन वा माणेन व माया लोभ-कसाय-दोसेणं ।
रागेण पओसेण व अन्नाण-मोह-मिच्छत्त-हासेण वा वि। मू. (१३३८)(भएणं कंदप्पा दप्पेण) एएहिं य अन्नेहिं य गारवमालंबणेहिं जो खंडे।
सो सवठ्ठ-विमाणा घल्ले अप्पाणगं निरए (खिवे) । मू. (१४३९) से भयवं किं आया संरकायब्वे उयाहुछज्जीव-निकाय-माइ संजमं संरक्खेव्वं गोयमा जेणंछक्कायाइ-संजमं संरक्खे से णं अनंत-दुक्ख-पयायगाओ दोग्गइ-गमणाओ अत्ताणं संरक्ख तम्हा उ छक्कायाइं संजममेव रक्खेयव्वं होइ।
मू. (१४४०) से भयवं केवतिए असंजमठ्ठाणे पन्नत्ते गोयमा अनेगे असंजम-ट्ठाणे पनत्ते जावणं कायासंजम-हाणे से भयवंकयरेणं से काया संजम-हाणे गोयमा कायासंजपट्ठाणे अनेगहा पन्नत्ते (तं जहा-) मू. (१४४१) पुढवि-दगागनि-वाऊ-वणप्फती तह तसाण विविहाणं ।
हत्थेण विफरिसणयं वजेजा जावजवं पि।। मू. (१४४२) सी-उण्ह-खारमखित्ते अग्गी लोणूस अंबिले नेहे।
पुढवादीण-परोप्पर-खयंकरे बज्झ-सत्थेए ।। मू. (१४४३) पहाणुम्मद्दणखोभण-हत्थं-गुलि-अक्खि-सोय-करणेणं !
__ आवीयंते अनंतेआऊ-जीवे खयं जंति ।। मू. (१४४४) संधुक्कण-जलणुजालणेण उज्जोय-करण-मादीहिं।
वीयण-फूमण-उब्भावणेहिं सिहि-जीव-संघायं ॥ मू. (१४४५) जाउ-खयं अन्ने वि य छज्जीव-निकायमइगए जीवे ।
जलणो सुटुइओ विहुसंभक्खइ दस-दिसाणं च ॥ म. (१४४६) वीयणग-तालियंटय-चामर-उक्खेव-हत्थ-तालेहि।
धोवण-डेवण-लंघण-ऊसासाईहि वाऊणं ।। मू. (१४४७) अंकूर-कुहर-किसलय-पवाल-पुष्फ-कंदलाइणं ।
हत्य-फरिसेण बहवे जंति खयं वणप्फती-जीवे ॥ मू. (१४४८) गमनागमन-निसीयण-सुयनुट्ठण-अनुवउत्तय-पमत्तो।
वियलिदि-वि-ति-चउ-पंचेदियाण गोयम खयं नियमा। मू. (१४४९) पाणाइवाय-विरई सिव-फलया गेण्हिऊण ता धीमं ।
मरणावयम्मि पत्ते मरेज विरइ न खंडेजा। मू. (१४५०) अलिय-वयणस्स विरई सावज्जं सच्चमवि न भासेज्जा ।
पर-दव्व-हरण-विरई करज दिन्ने विमा लोभं ।।
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