Book Title: Agam Sutra Satik 39 Mahanishith ChhedSutra 6
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan

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Page 119
________________ २३८ देहं इंति तु पणइ-आमयभंड व जाल-भारियं ।। मू. (१३५२ ) इय जाण त चुक्कसि एरिसस्स खणभंगुररस देहस्स । उri कटुं घोरं चरसु तवं नत्थि परिवाडि ॥ महानिशीथ छेदसूत्रम् - ६/-/१३५१ मू. (१३५३) गोयमा त्ति वास- सहस्सं पि जई काऊणं संजमं सुविउलंपि । अंते किलिङ-भावो न विसुज्झइ कंडरिओ व्व ॥ मू. (१३५४) अप्पेण वि कालेणं केइ जहा गहिय-सील-सामन्ना । साहिंति नियय-कचं पाडरिय-महा-रिसि व्व जहा ।। मू. (१३५५) न य संसारम्भि सुहं जाइ-जरा-मरण- दुक्ख - गहियस्स । जीवस्स अस्थि जम्हा तम्हा मोक्खो उवाए उ ।। मू. (१३५६) सव्व पयारेहिं सव्वहा सव्व-भाव-भावंतरेहिं णं गोयमा त्ति बेमि । अध्ययनं -६- समाप्तम् अध्ययनं -७- प्रायश्चित् सूत्रं -: : चूलिका-१ -एकांत निर्जरा :भयवं ता एय नाएणं जं भणियं आसि मे तुमं । परिवाडिए तचं किं न अक्खसि पायच्छितं तत्थमज्झवी ॥ हवइ गोयम पच्छित्तं जइ तुमं तं आलंबसि । नवरं धम्म - वियारो ते कओ सुवियारिओ फुडो ॥ न होइ एत्थ पच्छित्तं पुनरवि पुच्छेजा गोयमा । संदेहं जाव देहत्यं मिच्छतं ताव निच्छयं ॥ मिच्छत्तेन य अभिभूए तित्थयरस्स अवि भासियं । वयणं लंघित्तु विवरीयं वाएत्ताणं ॥ पविसंति घोरतम - तिमिर-बहलंघयारं पायालं । नवरं सुवियारियं काउं तित्थयरा सयमेव य ॥ भणति तं तहा चेव गोयमा समनुट्ठए ॥ अत्येगे गोयमा पानी जे पव्वज्जिय जहा तहा । अविहीए तह चरे धम्मं जह संसारा न मुच्चए ॥ मू. (१३६२) मू. (१३६३) से भयवं कयरे णं से विही- सिलोगो गोयमा इमे णं से विहि-सिलोगो तं जहा । चिइ-वंदन - पडिक्कमणं जीवाजीवाइ-तत्त-सम्भावं ॥ समि- इंदिय-दम-गुत्ति-कसाय- निग्गहणमुवओगं ॥ नाऊण सुवीसत्थो सामायारिं किया-कलावं च । आलोइय-नीसल्लो आगब्मा परम-संविग्गो ॥ मू. (१३५७) जहा मू. (१३५८) मू. (१३५९) मू. (१३६०) मू. (१३६१) मू. (१३६४) भू. (१३६५) जम्म- जर-मरण-भीओ चउ- गइ संसार-कम्म-दहणट्ठा । पइदियहं हियएणं एवं अनवरय-झायंतो ॥ For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org

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