Book Title: Agam Sutra Satik 39 Mahanishith ChhedSutra 6
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan
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महानिशीथ - छेदसूत्रम् - ७ (१)/-/१४००
मू. (१४००) से भयवं किमोयानुमेत्तमेव पच्छित्तं- विहाणं जेणेवमाइसे गोयमा एय सामन्नेणं दुवाल सह-काल-मासाणं पइदिन -महन्निसाणुसमयं पाणोवरमं जाव स-बाल वुड्ड-सेहमयहरायरियमाईणं तहा य अपडिवाइ-महोवहि-मनपजवणाणी छउमत्थ- तित्थयराणं एगंतेनं अब्मुट्ठाणारिहावस्सगसंबंधेय चेव सामन्नेणं पच्छितं समाइङ्कं नो णं एयानुमेत्तमेव पच्छित्तं से भयवं किं अपडिवाइमहो वही - मन- पजवणाणी छउमत्थ- वीयरागे य सयलावस्सगे समनुट्ठीया गोयमा समनुट्टीया न केवलं समनुट्ठीया जमग- समगमेवाणवरणमनुट्ठीया से भयवं कहं गोयमा अर्चित-बल-वीरियबुद्धि-नाणाइसय सत्ती- सामत्येणं से भयवं के णं अद्वेणं ते समनुट्टीया गोयमा मा णं उस्सुत्तुम्मग्गपवत्तणं मे भवउ त्ति काऊणं ।
२५०
मू. (१४०१ ) से भयवं किं तं सविसेसं पायच्छितं जाव णं वयासि गोयमा वासारत्तियं पंथगामियं वसहि पारिभोगियं गच्णायारमइक्कमणं संधायारमइक्कमणं गुत्ती भेय-पयरणं सत्त-मंडलीधम्माकमणं अगीयत्थं गच्छ पयाण-जायं कुसील-संभोगजं अविहीए पव्वज्जा-दानोवट्ठावणा जायं अओग्गस्स सुत्तत्योभयपन्नवणजायं अणाययणेक्क-खण-विरत्तणा दजायं देवसियं राइयं पक्खियं मासियं चाउम्पासियं संवच्छरियं एहियं पारलोइयं मूल-गुण-विराधनं उत्तर-गुण-विराधनं आभोगानाभोगयं आउट्टि पमाय-दप्प- कप्पियं वय-समणं- धम्म-संजम-तव-नियम-कसाय-दंडगुत्तीयं मय-भय- गारव - इंदियजं वसणायंक-रोद्द -डुज्झाण राग-दोस - मोह-मिच्छत्त-दुट्ठ-कूरज्झवसाय समुत्थं ममत्तं- मुच्छा परिग्गहारंभजं असमिइत्त-पट्ठी- मंसासित्त धम्मं-तराय-संतावुव्वेवगासमा हानुप्पायगं संखाईया आसायणा- अन्नयरा आसायणयं पाणवह समुत्थं मुसावाय- समुत्थं अदत्तादान - गहण समुत्थं मेहुणासेवणा- समुत्यं परिग्गह- करण- समुत्थं राइ-भोयण-समुत्थं मानसियं वाइयं काइयं असंजम करण- कारवण अनुमइ समुत्थं जाव णं नाण- दंसण चारित्तायार-समुत्थं किं बहुना जालइयाई ति गाल - चिति-वंदनादओ पायच्छित्त-ठाणाई पत्रत्ताइं तावइयं च पुणो विसेसेणं गोयमा असंखेहा पत्रविज्रंति, एवं संघारेजा जहा णं गोयमा पाचच्छित्त-सुत्तस्स णं संखेजाओ नित्तीओ संखेज्जाओ संग्रहणीओ संखिज्जाई अनुयोग- दाराई संखेज्जे अकखरे अनंते पञ्जवे जाव णं दंसिजति उवदंसिजति आघविज्जंति पन्नविनंति परूविनंति कालाभिग्ग- हत्ताए दव्वभिग्गहत्ताए खेत्ताभिग्गहत्ताए भावाभिग्गहत्ताए जाव णं अनुपुथ्वीए अनानुपुवीए जहा
गुण-द्वासु तिमि ।
मू. (१४०२) से भयवं एरिसे पच्छित्त बाहुल्ले से भयवं एरिसे पच्छित्त-संघट्टे से भयवं एरिसे पच्छित्त संगहणे अस्थि केई जे णं आलोएत्ताणं निंदित्ताण गरहित्ताणं जाव णं अहारिहं तवो-कम्पं पायच्छित्तमनुचरित्ताणं सामन्नमाराहेज्जा पवयणमाराहेजा आणं आराहेजा जाव णं आयहियट्ठयाए उवसंपचित्ताणं सकज्जं तमट्टं आराहेजा गोयमाणं चउव्विहं आलोयणं विंदा तं जहा - नामालोयणं ठवणालोयणं पोत्थयाइसु-मालिहियं दव्वालोयणं नाम जं आलोएत्ताणं असद-भावत्ताए जहोवइट्ठ पायच्छित्त नानुचिट्ठे एते तओ वि पए एवंत णं गोयमा अपसत्थे जे य णं से चउत्थे पए भावालोयणं नाम ते णं तु गोयमा आलोएत्ताणं निदित्ताणं गरहित्ताणं पायच्छित्त-मनुचरित्ताणं जाव णं आयहियट्ठाए उवसंपजित्ताणं सकजुत्तम आराहेजा, से भयवं कयरे णं से चउत्थे पए गोयमा भावालोयणं सेभवं किं तं भावालोयणं गोयमा जे णं भिक्खू - एरिस-संवेग-वेरग्ग-गए सील-तव-दान-भावण
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