Book Title: Agam Sutra Satik 39 Mahanishith ChhedSutra 6
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan
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महानिशीथ - छेदसूत्रम् - ६/-/११०६
जिनाभिहियं सुत्तत्थं गणहरो जा परूवती ॥ तावमालावगं एवं वक्खाणम्मि समागयं । पुढवी काइगमेगं जो वावाए सो असंजओ ।। ताईंसरो विचितेइ सुहुमे पुढविकाइए। सव्वत्य उद्दविजंति को ताइं रक्खिउं तरे ॥ हलुईकरेइ अत्ताणं एत्वं एस महायसो। असद्धेयं जने सयले किभट्ठेयं पवक्खई ॥ अच्चंत कडयर्ड एयं वक्खाण तस्स वी फुडं । कंठसोसो परं लाभे एरिसं कोऽनुचिट्ठइ || ता एवं विप्पमोत्तूर्ण सामन्नं किंचि मज्झिमं । जं वा तं वा कहे धम्मं ता लोओऽ म्हाणाउट्टई || अहवा हा हा अहं मूढो पाव-कम्मी नराहमो । नवरं जइ नानुचिट्ठामि अन्नोऽनुचेट्ठती जनो ॥ जेणेयमनंत-नाणीहिं सव्वन्नूहि पवेदियं । जो एवं अन्ना वातस्स अट्ठो न बज्झइ ॥ ताहमेयरस्स पच्छित्तं धोरमइदुक्करं चरं । लहु सिग्धं सुसिग्घयरं जावमधून मे भवे ॥ आसादना कयं पावं आसुं जेन विहुव्वती । दिव्वं वास सयं पुन्नं अह सो पच्छिथमनुचरे ॥ तं तारिसं महा-घोरं पायच्छित्तं सयं-मती । काउं पचेयबुद्धस्स सयासे पुणो वि गओ ॥ तत्था विजा सुणे वक्खाण तावऽ हिगारम्मिमागयं । पुढवादीणं समारंभ साहू तिविहेणं वज्जए । दढ - मूढो हुं छ जोईं ता इसरो मुक्कपूओ । विचिंतेवं जहेत्थ जए को न ताई समारंभे ॥ पुढवीए ताव एसेव समासीणो वि चिट्ठइ । अग्गीए द्वयं खायइ सव्वं बीय समुब्भवं ॥ अन्नं च विना पानेनं खणमेकं जीवएकहं । ता किं पितं पवक्खे स जं पच्चयमत्थंतियं ॥ इमस्सेव समागच्छे न उनेयं कोइ सद्दहे । तो चिट्ठउ ताव एसेत्थं वरं सो चेव गणहरो ॥ अहवा एसो न सो मज्झं एक्को वी भणियं करे । अलिया एवंविहं धम्मं किंचूद्देसेण तं पिय ॥ साहिज्जइ जो सवे किंचि न वुण मच्चंत कडयडं ।
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