Book Title: Agam Sutra Satik 39 Mahanishith ChhedSutra 6
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan
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अध्ययन :६, उद्देशक:
२२७
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जं सिविणे विन कायव्वं तं मे अज विचितियं ॥
तहा य एत्य जम्मम्मि पुरिसो ताव मनेन वि । नेच्छिओ एत्तियं कालं सिविणंते वि कहिंचि वि॥ ता हा हा दुरायारा पाव-सीला अहन्निया। अट्टमट्टाई चिंतंती तित्थयर-मासाइमो॥ तित्थयरेणावि अनंतं कई कडयडं वयं ।
अइदुद्धरं समादिष्टं उग्गं घोरं सुदुक्करं ॥ तातिविहेण को सक्को एयं अनुपालेऊणं । वाया-कम्मं समायरणे बेरक्खं नो तइयं मनं ।।
अहवा चितिजई दुक्खं कीरई पुन सुहेण य । ता जो मनसा वि कुसीलो सकुसीलो सब्व-कञ्जेसु ।। ताजं एत्थं इमं खलियं सहसा तुडि-वसैण मे।
आगयं तस्स पच्छित्तं आलोइत्ता लहुं चरं ।। सईण सील-वंताणं मझे पढमा महाऽऽरिया।
धुरम्मि दियए रेहा एवं सग्गे विधूसई॥
तहाय पाय धूली मे सब्बो विवंदए जनो। जगा किल सुज्झिज्जए मिमीए इति पसिद्धाए अहं जगे ॥
ता जइ आलोयणं देमिता एयं पयडी-भवे । मम भायरो पिया-माया जाणित्ता हुंति दुक्खिए। अहवा कहवि पमाएणं मे मनसा विचिंतिय। तमालोइयं नचा मज्झ वग्गस्स को दुहो।।
जावेयं चिंतिउं गच्छे ता वुद्धंतीए कंटगं। फुडियं ठसत्ति पायतले ता निसन्ना पडुल्लिया ।। चिंतेइ हो एत्य जम्मम्मि मज्झ पायम्मि कंटगं ।
न कयाइ खुत्तं ता किं संपयं एत्थ होहिइ॥ अहवा मुणियं तु परमत्थ-जाणगेअनुमती कया।
संघटुंतीए चिडल्लीए सीलं तेन विराहियं ॥ मूयंध-काण-बहिरं पि कुटुं सिडि विडि-विडिवडं।
जाव सीलं न खंडेइ ताव देवेहिं थुव्वइ ।। कंटगंचेव पाए मे खुतं आगासागासियं ।
एएणं जं अहंचुक्का तं मे लाभं महतियं ॥ सत्त वि साहाउ पायाले इत्थी जा मनसा विय । सीलं खंडेइ सा नेइ कहियंजननीए मे इमं ॥ ताजंन निवडई वजं पंसु-विट्ठी ममोवरि।
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