Book Title: Agam Sutra Satik 39 Mahanishith ChhedSutra 6
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan

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Page 99
________________ २१८ महानिशीय-छेदसूत्रम् -६/-1१०३७ वावइजा उ दो तिन्नि सेसाई परियावई॥ मू. (१०३८) पायच्छित्तस्स ठाणाई संखाइयाइंगोयमा । अनालोयंतो हुएवं पिससल्लमरणं मरे।। मू. (१०३९) सयसहस्स नारीणं पोट्ट फालेत निर्गितइ। सत्तट्ठमासिए गडमे चडफडते निगितइ ।। मू. (१०४०) जंतस्स जेत्तियंपावं तेत्तियं तं नवं गुणं। एक्कसित्थी पसंगेणं साहू बंधिज मेहुणा ।। मू. (१०४१) साहुणीए सहस्सगुणं मेहुणेकसि सेविए। कोडिगुणं तु बिइज्जेणं तइए बोही पनस्सई ।। मू. (१०४२) एयं नाऊण जो साहू इथियं रामेहिई। बोहिलामा परिभट्टो कहं वरा सोहिइ॥ मू. (१०४३) अबोहिलाभियं कम्मं संजओ अह संजई। मेहुणे सेविए आऊ-तेउक्काए पबंधई ।। मू. (१०४४) जम्हा तीसुवि एएसु अवरज्झंतो हु गोयमा। उम्मग्गमेव वद्धारे मग्गं निट्ठवइसव्वहा ।। मू. (१०४५) ते सरीरंसहत्येणं छिंदिऊणं तिलं तिलं। मू. (१०४६) अग्गिए जइ वि होमंति तो विसुद्धी न दीसइ॥ मू. (१०४७) तारिसो वि निवित्ति सो परदारस्स जई करे। सावग-धम्मंच पालेइ गइ पावेइ मज्झिमं ।। मू. (१०४८) भयवंसदार-संतोसे जइ भवे मज्झिमं गई। ता सरीरे वि होमंतो कीस सुद्धिं न पावई॥ मू. (१०४९) सदारं परदारं वा इत्थी पुरीसो व्व गोयमा। रमंतो बंधए पावं नो णं भवइ अबंधगो॥ मू. (१०५०) सावग-धम्मंजहुत्तंजो पाले पर-दारं चए। जावजीवं तिविहेणं तमनुभावेन सा गई। मू. (१०५१) नवरं नियम-विहूणस्स परदार-गमनस्स उ। अनियतस्स भवे बंधं निवत्तिए महाफलं ॥ मू. (१०५२) सुथेवाणं पि निवित्ति जो मनसा विय विराहए। सोमओदोग्गइंगच्छे मेघमाला जहजिया। मू. (१०५३) मेघमालज्जियं नाहं जाणिमो भुवन-बंधवा । मनसावि अनुनिवित्ति जाखंडियं दोग्गइंगया ।। मू. (१०५४) वासुपुजस्स तित्थम्मि भोला कालगच्छवी । अन्नओ नत्यि नीसारं मंदिरोवरि संठिया॥ भू. (१०५५) सा नियममागास-पक्खंदा काउंभिक्खाए निग्गया। Jain Education International For Private & Personal Use Only Fore www.jainelibrary.org

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