Book Title: Agam Sutra Satik 39 Mahanishith ChhedSutra 6
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan

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Page 81
________________ महानिशीथ - छेदसूत्रम् - ५ /-/ ८१६ लल्ली-वागरणं करेमाणो अनुगच्छमाणो य सुक्खाए गय-जलाए नदीए उबुज्झं एए गच्छंतु दसदुवारेहिं अहयं तु तावाय-हियमेवानुचिट्ठेमो किं मज्झं पर कएणं सुमहंतेनावि पुन्न- पब्भारेण थेवमवि किंचि परित्ताणं भवेज्जा स परक्कमेणं चेव मे आगमुत्त-तव-संजमानु-ट्ठाणेणं भवोयही तरेयव्वो एस उणं तित्यय एसो (जहा) - मू. (८१७) अप्पहियं कायव्वं जइ सक्का परहियं पि पयरेज्जा । अत्त- हिय-पर-हियाण अत्त-हियं चैव कायव्वं ॥ मू. (८१८) अन्नं च - जइ एते तव-संजम-किरियं अनुपालेहिंति तओ एतेसिं चेव सेयं होहि इ जइ न करेहिंति तओ एएसिं चेव दुग्गह-गमनमनुत्तरं हवेज्जा नवरं तहा वि मम गच्छो समप्पिओ गच्छाहिवई अहयं भणामि अन्नं च जे तित्ययरेहिं भगवंतेहिं छत्तीसं आयरियगुणे समाइट्ठे तेसिं तु अहयं एक्कमवि नाइकमामि जइ वि पानोवरमं भवेज्जा जं च आगमे इह-परलोग-विरुद्धं तं नायरामि न कारयामि न कज्जमाणं समनुजाणामि तामेरिसगुण-जुत्तस्सावि जइ भणियं न करेंतिं ताहमिमेसिं वेसग्गहणा उद्दालेमि एवं च समए पन्नथी जहा जे केई साहू वा साहूणी वा वायामेत्तेमा वि असंजममनुचिट्ठेज्जा से णं सारेज्जा से णं वारेज्जा से णं चोएआ पडिचोएज्जा से णं सारिज्यंते वा वारिजंते वा चोइज्जते वा पडिचोइज्जते वा जेणं तं वयणमवमन्निय अलसायमाणे इ वा अभिनिविट्ठे इ वा न तह त्ति पडिवज्जिय इच्छं परंजित्ताण तत्थामो पडिक्कमेज्जा २०० से णं तस्स वेसग्गहणं उद्दालेज्जा एवं तुं आगमुत्तणाएणं गोयमा जाव तेनायिरिएणं एगस्स सेहस्स वेसग्गहणं उद्दालियं ताव णं अवसेसे दिसोदिसिं पणट्ठे ताहे गोयमा सो आयरिओ सणियं सणियं तेसिं पट्ठीए जाउमारद्धो नो णं तुरियं तुरियं से भयवं किमट्ठ तुरियं-नो पयाइ गोयमा खारा भूमी जो महुरं संकमेज्जा महुराए खारं किण्हाए पीयं पीयाओ किण्हं जलाओ थलं थलाओ जलं संकमेज्जा तेनं विहिए पाए पमजिय पमजिय संकमेयव्वं नो पमज्जेज्जा तओ दुवालस-संवच्छरियं पच्छित्तं भवेज्जा एएणमट्टेणं गोयमा सो आयरिओ न तुरियं तुरियं गच्छे अहन्नया सुया-उत्तविहिए थंडिल-संकमणं करेमाणस्स णं गोयमा तस्सायरिस्स आगओ बहु-बासर खुहा- परिगयसरीरो वियडदाढा - कराल- कयत भासुरो पलय कालमिव-घोर रूवो केसरी मुणियं च तेनं महानुभागेणं गच्छाहि-वइणा जहा- जइ दुयं गच्छिज्जइ ता चुक्किज्जइ इमस्स नवरं दुयं गच्छमाणाणं असंजमं ता वरं सरीररोवोच्छेयं न असंजम-पवत्तण ति चिंतिऊणं विहिए उवट्ठियस्स सेहस्स जमुद्दालियं वेसग्गहणं तं दाऊणं ठिओ निप्पडिकम्मं-पायवोवगमनानसणेणं सो वि सेहो तहेव अहन्नया अचंत-विसुद्धंतकरणे पंचमंगलपरे सुहज्झवसायत्ताए दुवे वि गोयमा वावईए तेन सीहेणं अंतगडे केवली जाए अट्टप्पयार-मल-कलंक - विप्यमुक्के सिद्धे य ते पुन गोयमा एकूणे पंच सए साहूणं तक्कम्म- दोसेणं जं दुक्खमनुभवमाणे चिट्ठति जं चानुभूयं जं चानुभविहिंति अनंतसंसार-सागरं परिभमंते तं को अनंतेनं पि कालेणं भाणिऊं समत्यो एए ते गोयमा एगूने पच-सए साहूणं जेहिं च णं तारिस - गुणोववेतस्स महानुभागस्स गुरुणो आणं अइक्कमियं नो आराहियं अनंत-संसारीए जाए। मू. (८१९) से भयवं किं तित्थयर-संतियं आणं नाइक्कमेज्जा उयाहु आयरिय-संतियं गोयमा चउव्विहा आयरिया भवंति तं जहा नामायरिया ठवणायरिया दव्वायरिया भावावयरिया तत्थ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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