Book Title: Agam Sutra Satik 39 Mahanishith ChhedSutra 6
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan

View full book text
Previous | Next

Page 74
________________ १९३ अध्ययनं : ५, उद्देशक: दिवसेणं विजो जेट्टो नो हीलिज्जइ तयं गच्छं ।। मू. (७३५) जत्थ य कजा कप्पं पान-चाए विरोरव-दुभिक्खे । नयपरिभुञ्जइ सहसा गोयम गच्छं तयं भणियं ।। मू. (७३६) तत्थ य अजाहि समं थेरा वि न उल्लवंति गय-दसणा। नयनिज्झायंतित्थी-अंगोवंगाईतं गच्छं ॥ मू. (७३७) जत्थ य संनिहि-उक्खड-आहड-मादीन नाम-गहणे वि। पूई-कम्माभीए आउत्ता कप्प तिप्पंति ।। मू. (७३८) जत्थ य पच्चंगुब्मड-दुज्जइ-जोव्वण-मरट्ट-दप्पेणं । वाहिजंता वि मुनी निक्खंति तिलोत्तमं पितं गच्छं ।। मू. (७३९) वाया-मित्तेण विजय भट्ट-सीलस्स निग्गहं विहिणा। बहु-लद्धि-जुयस्सावी कीअइ गुरुणा तयं गच्छां॥ पू. (७४०) मउए निहुय-सहावे हास-दव-वज्जिए विगह-मुक्के । असमंजसमकरेते गोयर-भमूह विहरति ।। मू. (७४१) मुणिणो नाणाभिग्गह-दुक्कर-पच्छित्तमनुचरंताणं। जायइ चित्त-चमकं देविंदाणं पितं गच्छां। मू. (७४२) जत्थ य वंदन-पडिक्कमणमाइ-मंडलि विहाणनिउण-न्नू। गुरुणो अखलिय-सीले सययं कझुग्ग-तव-निरए ।। मू. (७४३) जत्थ य उसभादीणं तित्थयराणं सुरिंदमहियाणं । कम्मट्ठ-विप्पमुक्काण आणं न खलिज्जइ स गच्छो ।। मू. (७४४) तित्थयरे तित्थयरे तित्थ पुन जाण गोयमा संघं । संघे य ठिए गच्छे गच्छ-ठिए नाण-दंसण-चरिते ।। मू. (७४५) नादसणस्स नाणं दंसणनाणे भवंति सव्वत्थ । भयणा चारित्तस्स उदंसण-नाणे धुवं अस्थि ॥ भू. (७४६) नाणी दंसण-रहिओ चरित्त-रहिओउ भमइ संसारे । जो पुन चरित्त-जुत्तो सो सिज्झइ नत्थि संदेहो ॥ मू. (७४७) नाणी दंसण-सोहओ तवो संजमो उ गुत्तिकरो। तिण्हं पि समाओगे मोक्खो नेक्स्स वि अभावे ।। मू. (७४८) तस्स वि य संकंगाई नाणादि-तिगस्स खंति-मादीणि। तेसिं चेक्केक्क-पयंजत्थानुद्विज स गच्छो । मू. (७४९) पुढवि-दगागणि-वाऊ-वणप्फई तह तसाण विविहाणं। __ मरणंत विन मनसा कीरइ पीडं तयं गच्छं ।। भू. (७५०) जत्थ य बाहिर-पानस्स बिंदु-मेत्तं पि गिम्ह-मादीसुं। तण्हा-सोसिय-पाणे मरणे विमनी न इच्छंति ।। 23] 13 For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170