Book Title: Agam Sutra Satik 39 Mahanishith ChhedSutra 6
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan

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Page 33
________________ १५२ महानिशीथ-छेदसूत्रम् -२/३/३८९ पुढवादीसुंगया समाणी अनंत-काल-परियट्टेण विणं नो पावेज्जा बेइंदियत्तणं एवं कह कह वि बहुकेसेणंअनंत-कालाओएगिदियत्तणंखविय बेइंदियत्तंएवं तेइंदियत्त चउरिदियत्तमवि केसेणं वेयइत्ता पंचिंदियत्तेणंआगया समाणी दुभित्थिय-पंड-तेरिच्छ-वेयमाणी हा-हा-भूय-कट्ठ-सरणा सिविणेविअदिट्ठ-सोक्खा निचं संतावुब्वेविया सुहिसयण-बंधव-विवञ्जियाआजम्मंकुच्छणिज्जं गरहणिजं निंदणिज्जंखिंसणिजंबहु-कम्मंतेहिं अनेग-चाडु-सएहिलद्धोदरभरणासव्व-लोग-परिभूया चउ-गतीए संसरेजा अन्नं च णं गोयमा जावइयं तीए पावइत्थीए बद्ध-पुट्ठनिकाइयं कम्म-ट्ठिई समज्जियं तावइयं इत्थियं अभिलसिउ-कामे पुरिसे उक्किठ्ठकिट्ठयरं अनंतं कम्म-ट्टिइं बद्ध-पुट्ठनिकाइयं समजिणेज्जा एतेनं अटेणं गोयमा एवं वुच्चइ जहाणं पुरिसे विणं जे णं नो संजुजे से णं धन्नेजेणं संजुञ्जे से णं अधन्ने। मू. (३९०) भयवं केसणं पुरिसे सणं पुच्छा जावणंधनं वयासि गोयमा छव्विहे पुरिसे नेए तं जहा-अहमाहमे अहमे विमज्झिमे उत्तमे उत्तमुत्तमे सब्बुत्तमुत्तमे। मू. (३६१) तत्थणं जे सव्वुत्तमुत्तमे पुरिसे से णं पंचंगुब्भडजोव्वण-सब्बुत्तम-रूव-लावन्नकंति-कलियाए विइत्थीएनियंबारूढोवाससयंपिचिट्ठिज्जा नोणंमनसा वितंइस्थियं अभिलसेज्जा मू. (३९२) जेणंतु से उत्तमुत्तमे सेणंजइ कहवितुडी-तिहाएणं मनसा समयमेक्के अभिलसे तहाविबीय समयेमणंसनिलंभिय अत्ताणं निदेजा गरहेजान पुणो बीएणंतजम्मे इत्थीयं मनसा विउ अभिलसेजा जेणं से उत्तमे सेणंजइ कह विखणं मुहुत्तं वा इत्थियं कामिज्जमाणिं पेक्खेज्जा तओ मनसा अभिलसेजा जावणं जामद्ध-जामं वा नो णं इत्थीए समं विकम्मं समायरेज्जा । मू. (३९३) जइणंबंभयारी कयपचक्खाणाभिग्गहे अहाणं नोबंभयारी नो कयपञ्चक्खाणाभिग्गहे तो णं निय-कलत्तभयणा न तु णं तिव्वेसु कामेसु अभिलासी भवेज्जा तस्स एयस्स णं गोयमा अस्थि बंधो किंतु अनंत-संसारियत्तणं नो निबंधेज्जा । मू. (३९४) जे णं से विमज्झिमे से णं निय-कलतेणं सद्धिं विकम्मं समावरेज्जा नो णं परकलत्तेणं एसे यणंजइपच्छाउग्ग-बंभयारी नो भवेजा तोणं अज्झवसाय-विसेसं तं तारिसमंगीकाऊणंअनंत-संसारियत्तणेभयणाजओणंजे केइअभिगय-जीवाइ-पयत्येसव्वसत्तेआगमानुसारेणं सुसाहूणं धम्मोवटुंभ-दानाइ-दान-सील-तव-भावणामइए चउबिहे धम्म-खंधे समनुडेजा सेणंजइ कहविनियम-वयभंगंन करेज्जा तओणंसाय-परंपरएणंसुमानुसत्त-सुदेवत्ताए जावणं अपरिवडिय-सम्मते निसग्गेन वा अभिगमेणन वा जाव अट्ठारससीलंग-सहस्सधारी भवित्ताणं निरुद्धासवदारे विहूय-रयमले पावयं कम्मं खवित्ताणं सिझेजा।। __ मू. (३९५)जेयणंसे अहमेसेणंस-पर-दारासत्त-माणसे अनुसमयंकूरग्झव-सायन्झवसियचित्ते हिंसारंभ-परिग्गहाइसु अभिरए भवेजा तहा णं जे य से अहमाहमे से णं महापाव-कम्मे सव्वाओ इत्थीओ वाया मनसा य कम्मुणा तिविहं तिविहेणं अनुसमयं अभिलसेना तहा अञ्चंतकूरज्झवसाय-अज्झवसिएहिंचत्तेहिसारंभ-परिग्गहासत्ते कालंगमेजा एएसिं दोण्हं पिणं गोयमा अनंत-संसारियत्तणं नेयं । मू. (३९६) भयवं जे णं से अहमे जे वि णं से अहमाहमे पुरिसे तेसिं च दोण्हं पि अनंतसंसारियत्तणं समक्खायं तो णं एगे अहमे एगे अहमाहमे एतेसिं दोण्हं पि पुरिसावत्थाणं के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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