Book Title: Agam Sutra Satik 39 Mahanishith ChhedSutra 6
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan
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१५८
महानिशीथ-छेदसूत्रम् -२/३/४४४
मू. (४५)
मू. (४)
मू. (४७)
मू. (४८)
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मू. (४५०)
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मू. (४५३)
जिनलिंगंतु समुबहइ तं तिगंनो विवाए। तो महयासायणं तेर्सि इस्थि-ग्गी-आउ-सेवणे। अनंतनाणी जिने जम्हा एयं मनसा विनाऽभिलसे।। ___ता गोयमा सहियएणं एवं वीमसिउंदढं । विभावय जइ बंधेजा गिहि नो उ अबोहिलाभियं ।।
संजए पुन निबंधेजा एयाहिं हेऊहिंय। आणाइक्कम-वय-बभंगा तह उम्मग्ग-पवत्तणा ।।
मेहुणं चायुकायं च तेउकायं तहेव य॥ हवइ तम्हा तितयं ति जत्तेणं वजेज्जा सव्वहा मुनी ॥
जे चरते व पच्छित्तं मनेनं संकिलिस्सए। जह भणियं वाहणानुढे निरयं सो तेन वचए।
भयवं मंदसद्धेहिं पायच्छित्तं न कीरई। अह काहिति किलिट्ठ-मने तो अनुकंप विरुज्झए।
नारायादीहिं संगामे गोयमा सल्लिए नरे। सल्लुद्धरणे भवे दुक्खं नानुकंपा विरुज्झए।
एवं संसार-संगामे अंगोवंगत-बाहिरं। . भाव-सल्लुद्धरिताणं अनुकंपा अनोवमा॥ भयवं सल्लम्मि देहत्थे दक्खिए होंति पाणिणो। जं समयं निष्फिडे सल्लं तक्खणा सो सुही भवे ॥
एवं तित्ययरे सिद्धे साह-धम्म विवंचिउं। जमकझं कयं तेनं निसिरिएणं सुही भवे ॥ पायच्छित्तेणं को ततथ कारिएणं सुही भवे।
जेणं थेवस्स वी देसि दुक्करं दुरनुचरं ।। उद्धरिउं गोयमा सल्लं वण-मंगंजाव नो कये। वण-पिंडीपट्ट-बंधंच ताव नो किं परुज्झए ।।
भावसल्लस्स वण-पिंडिं पट्टभूओ इमो भवे । पच्छित्तो दुक्खरोहं पि पाव-वणं खिप्पं परोहए॥
भयवं किमनुविजंते सुव्वंते जाणिए इवा। सोहेइसव-पावाई पछित्ते सव्वन्नु-देसिए॥ सुसाउ-सीयले उदगे गोयमाजाव नो पिबे । नरे गिम्हे वियाणंते ताव तण्हा न उवसमे ॥ एवं जाणित्तु पच्छित्तं असढ-भावे न जा चरे । ताव तस्स तयं पावं वड्डए उन हायए॥ भयवं किं तं वड्डेजा जं पमादेन कत्थई।
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