Book Title: Agam Sutra Satik 39 Mahanishith ChhedSutra 6
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan

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Page 49
________________ १६८ महानिशीथ-छेदसूत्रम् -३/-/५२३ मू. (५२३) भू. (५२४) मू. (५२५) मू. (५२६) मू. (५२७) मू. (५२८) मू. (५२९) मू. (५३०) मू. (५३१) चक्कहर-भानु-ससि-दत्त-दमगादीहिं विनिद्दिसे । पुव्वं ते गोयमा ताव-जं सुरिदेहिं भत्तिओ। सविडिए अनन्न-समे पूया-सक्कारे कए। ता किं तं सव्व-सावजं तिविहं विरएहिऽनुढ़ियं ।। उयाहु सव्व-थामेसुंसव्वहा अविअएसु उ। ननु भयवं सुरवरिंदेहिं सव्व-थामेसु सव्वहा ॥ अविरएहिं सुभत्तीए पूया-सक्कारे कए। ताजइ एवं तओ बुज्झ गोयमा नीसंसयं ॥ सयमेव सव्व-तित्थंकरहिं जं गोयमा-समायरियं । कसिणट्ठ-कम्मक्खय-कारयं तु भावत्थयमनुढे ।। भव-भीओ गमागम-जंतु-फरिसणाइ-पमद्दणं जत्थ । स-पर-हिओवरयाणं न मनं पिपवत्तए तत्थ ॥ तास-परहिओवरएहिं सव्वहाऽनेसियव्वं विसेसं । जं परमसारभूयं विसेसवंत च अनुट्टेयं ॥ ता परमसार-भूयं विसेसवंतं च साहुवग्गस्स । एगंत-हियं पत्थं सुहावहं पयडपरमत्थं । तंजहा मेरुत्तुंगे मणि-मंडिएक-कंचनगए परमरम्मे। नयन-मनाऽऽनंदयरे पभूय-विन्नाण-साइसए॥ सुसिलिट्ठ-विसिट्ट-सुलट्ठ-छंद-सुविभत्त-मुनि-वेसे। बहुसिंघयन्न-घंटा-धयाउले पवरतोरण-सनाहे ॥ सुविसाल-सुवित्थिन्ने पए पए पेच्छियव्व-सिरीए । मघ-मघ-मत-डझंत-अगलु-कपूर-चंदनामोए । बहुविह-विचित्त-बहुपुप्फमाइ-पूयारुहे सुपूए य। निच्च-पणच्चिर-नाडय-सयाउले महुर-मुख-सद्दाले ।। कुइंत-रास-जन-सय-समाउले जिण-कहा-खित्त-चित्ते । पकहत-कहग-नचंत-छत्त-गंधव्व-तूर-निग्घोसे॥ एमादि-गुणोवेए पए पए सव्वेमेइणी वढे। निय-भूय-विढत्त-पुनज्जिएण नायागएणअत्येण॥ कंचन-मणिसोमाणे थंभ-सहस्सूसिए सुवन्नतले । जो कारवेज जिनहरे तओ वि तव-संजमो अनंत-गुणो । तव-संजमेण बहु-भव-समज्जियं पाव-कम्म-मल-लेवं। निद्धोविऊण अइरा अनंत-सोक्ख वए मोक्खं । काउंपिजिनाययणेहिं मंडियं सव्वमेइणी-वटुं। दाणाइ-चउक्केणं सुटु वि गच्छेञ्ज अच्चुयगं । For Private & Personal Use Only मू. (५३२) मू. (५३३) मू. (५३४) मू. (५३५) मू. (५३६) मू. (५३७) मू. (५३८) मू. (५३९) Jain Education International www.jainelibrary.org

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