Book Title: Agam Sutra Satik 39 Mahanishith ChhedSutra 6
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan

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Page 48
________________ अध्ययनं:३, उद्देशकः १६७ अइसानुराय-हियएहिं उत्तमंन संदेहो । म. (५१४) ता सयल-देव-दानव-गह-रिक्ख-सुरिंद-चंदमादीणं । तित्थयरे पुजयरे ते चिय पावं पणासेंति॥ मू. (५१५) तेसि यतिलोग-महियाण धम्मतित्थंकराणं जग-गुरूणं। भावचण-दव्यधण-भेदेण दुहऽचणं भणियं ॥ भावश्चण-चारित्तनुट्ठाण-कटुग्ग-धोर-तव-चरणं । दव्वधणविरयाविरय-सील-पूया-सकार-दानादी ।। मू. (५१७) ता गोयमा णं एसेऽत्थ परमत्ये तंजहा। भावचणमुग्ग-विहारयाय दव्यधणं तु जिन-पूया ॥ पढमा जतीण दोन्नि वि गिहीण पढम चिय पसत्या॥ म. (५१८) एत्थंच गोयमा केई अमुणिय-समय-सब्भावे ओसन्न-विहारीनीयवासिणोअदिट्ट परलोग-पञ्चवाए सयंमती इडि-रस-साय-गारवाइमुच्छिए राग-दोस-मोहाहंकार-ममी-कारइसु पडिबद्धे कसिणसंजम-सद्धाम्म-परम्मुहे निद्दय-नितिस-निग्घिण-अकुलण-निक्किवे पावायरणेकअभिनिविट्ठ-बुद्धी एगंतेनं अइचंड-रोद्द-कूराभिग्गहिय-मिच्छ-द्दिविणो कय-सव्व-सावज-जोगपञ्चक्खाणे विष्पमुक्कासेस-संगारंभ परिग्गहे तिविहं तिविहेणं पडिवन्न-सामाइए य दव्वत्ताएन भावत्ताए नाम-मेत्तमुंडे अनगारेमहव्वयधरी समणे वि भवित्ताणं एवं मन्नामाणे सव्वहा उम्मग्गं पवत्तंतिजहा-किल अम्हे अरहताणंभगवंताणं गंध मल्ल-पदीव-सम्मजणोवलेवण-विचित्त-वत्थबलि-धूयाइ-तेहिं पूया-सकारेहिं अनुदियहममधणं पकुव्वाणा तित्थुच्छप्पणं करेमोतंचवायाए विनोणं तह त्ति गोयमा समनुजाणेशा से भयवं केणं अटेणं एवं वुधइजहा णतंच नोणंतह त्ति समनुजाणेजा गोयमा तयत्यानुसारेणं असंजम-बाहुल्लं असंजम-बाहुल्लेणंच थूलं कम्मसवं थूलकम्मासवाओ य अज्झवसायं पडुच्चा थूलेयर-सुहासुह-कम्पपयडी-बंधो सव्व-सावज-विरयाणं च वय-भंगो वय-भंगेण च आणा इक्कमे आणाइक्कमेणं तु उम्मग्ग-गामित्तं उम्मग्ग-गामित्तेणं च सम्मग्ग-विप्पलोयणं उम्मग्ग-पवत्तणं (च) सम्मग्ग-विपलोयणेणं उम्मग्ग-पवत्तणेणंच जतीणं महती आसायणा तओ य अनंत-संसाराहिंडणं एएणं अटेणं गोयमा एवं वुच्चइ-जहाणं गोयमा नो णं तं तह त्ति समनुजाणेजा।। मू. (५१९) दव्वत्थवाओ भावत्थयं तु दव्वत्थ ओ बहु गुणो भवउ तम्हा। ___अबुहजने बुद्धीणं छक्कायहियं तुगोयमाऽनुढे ।। मू. (५२०) अकसिण-पवत्तगाणं विरयाऽविरयाण एस खलु जुत्तो। जे कसिण-संजमविऊ पुष्पादीयं न कप्पए तेसिं तु) || मू. (५२१) किं मन्ने गोयमा एस बत्तीसिंदाणु चिट्ठिए । जम्हा तम्हा उ उभयं पि अनुदूजेत्थ नु बुज्झसी॥ मू. (५२२) विनिओगमेवं तं तेसि भावत्थवासंभवो तहा। भावत्रणा य उत्तमयं दसन्नभद्देण पायडे ।। जहेव दसन्नभद्देणं उयाहरणं तहेव य॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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