Book Title: Agam Sutra Satik 39 Mahanishith ChhedSutra 6
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan

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Page 58
________________ अध्ययनं : ३, उद्देशक: १७७ आगमओ य तत्थ आगमओ सम्म-इंसणं संकते कंखते विदुगुंछते दिट्ठीमोहं गच्छंते अनोववूहएपरिवडिय-धम्मसद्धे सामन्नमुज्झिउकामाणं अथिरीकरणेणं साहम्मियाणं अवच्छल्लत्तेणणं अडप्पभावनाए एत्तेहिं अट्ठहिं पि थाणंतरेहि कुसीले नेए।। मू. (६२२) नो आगमओ य दंसन-कुसीले अनेगहा तं जहा-चक्खु-कुसीले घाण-कुसीले सवण-कुसीले जिब्भ-कुसीले सरीर-कुसीले तत्थ चक्खुकुसीले तिविहे नेए तं जहा-पसत्थवक्खुकुसीले पसत्यापसत्य-चक्खु-कुसीले अपसत्थ-चक्खुकुसीले तत्थ-जे केइ-पसस्थ उसभादितेत्थयर-बिंब-पुरओ चक्खु-गोयर-ट्ठियं तमेव पासेमाणे अन्नं कि पि मनसा अपसत्यमज्झवसे से णंपसत्य-चक्खु-कुसीले तहाजेपसस्थापसत्थ-चक्खु-कुसीले तित्थयर-बिंबंहियएणंअच्छीहिकिं पि पेहेजा से णं पसत्थापसत्थ चक्खु-कुसीले तहा पसत्यापसत्थाई दवाई कागबग-ढेंकतित्तिर-मयूराइं सुकंत-दित्तित्तियं वा दटूर्ण तयहुत्तं चक्टुं विसज्जे से वि पसत्यापसत्थ-चक्खुकुसीले तहा अपसत्थ-चक्खु-कुसीले तिसहिहिं पयारेहि अपसत्था सरागा चक्खू त्ति से भयवं कयरे ते अपसत्ये तिसट्टी-चक्खु-भेए-- __गोयमा इमे तं जहा सब्भू कडक्खा तारा मंदा मंदालसा वंका विवंका कुसीला अद्धिक्खिया काणिक्खिया भामियाउभामिया चलिया वलियाचलवलिया उद्धम्मिल्ला मिलिमिला मनुसा पासवा पक्खा सरीसिवाअसंता अपसंताअथिरा बहुविगारा सानुरागा रागो ईरणी रागजन्ना मयुप्पायणी मयणी मोहनी वम्मोहनी भयजन्ना भयंकरी हियय-भेयणी संसयावहरणी चित्त-चमक्कुप्पायणी निबद्धा अनिबद्धागयाआगया गयागया गय-पच्चागया निद्धाडणी अहिलसणीअरइकरा अइकरा दीना दयावणा सूरा धरा हननी मारणी तावणी संतावणी कुद्धापकुद्धा घोरामहा-धोरा चंडा रोद्दा सुरोद्दा हा हा भूयसरणा रुखा सणिद्धा रुखसणिद्धा त्ति महिला णं चलणंगुट्ठ-कोडि-नह-करसुविलिहिया दिन्नालत्तं गायं च नह-मणिकिरण-निबद्धसक्कचालवं कुम्मुन्नय-चलणं सम्मानिमुग्ग-वट्ट-गूढजाणुंजंघा-पिहुल-कड़ियड-भोगा-जहण-नियंब-नाही-थण-गुज्झंतर-कट्ठा-भूयालट्टीओ अहरोठ्ठ-दसनपंती कन्ननासा नयण-जुयल-भमुहा-निडाल-सिररुह-सीमंतया-मोडयापट्टतिलग-कुंडल-कवोलकजल-तमाल-कलाव-हार-कडिय-सुत्तगणेउरर-बहुरक्खग-मणि-रयणकडग-कंकण-मुद्दियाइ-सुकंद-दित्ता-भरण-दुग्गुल्ल-वसण-नेवच्छाा कामग्गि-संधुक्कणी निरयतिरिय-गतीसुंअनंत-दुक्ख-दागया एसा साहिलास-सराग-दिट्ठी ति एस चक्खु-कुसले । मू. (६२३) तहा घाण-कुसीले जे केइ सुरहि-गंधेसु संगं गच्छइ दुरहिगंधे दुगुंछे से णं घाणकुसीले तहा सवण-कुसीले दुविहे नेए-पसत्ये अपसत्थे य तत्थ जे भिक्खू अपसत्थाई काम-रागसंधुक्खनु द्दिवन-उज्जालण-पज्जालण-संदिवणाई-गंधव्व-नट्ट धनुव्वेद-हत्थिसिक्खा-काम-रती. सत्थाईणि गंथाणि सोऊणं नालोएजा जाच णं नो पायछित्तमनुचरेज्जा से णं अपसत्थ-सवणकुसीले नेए तहा जेभिक्खूपसत्याइं सिद्धंतराचरिय-पुराण-धम्म-कहाओयअन्नाइंच गंथसत्थाई सुणेत्ता णं न किंचि आय-हियं अनुढे नाण-मयं वा करेइ से णं पसत्य-सवणकुसीले नेए तहा जिब्भा-कुसीले से णं अनेगहा तं जहा-तित्त-कडुय-कसाय-महुरंबिल-लवणाइं-रसाई आयायंते अदिट्ठाऽसुयाइंइह-परलोगो-भय-विरुद्धाइंसदोसाईमयार-जयारुच्चारणाईअयसऽमक्खाणाऽ[23] 12 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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