Book Title: Agam Sutra Satik 39 Mahanishith ChhedSutra 6
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan
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१७५
अध्ययनंः३, उद्देशकःखारमुत्तोज्झ-सिंभपडहच्छवस-जलुल-पूय-दुद्दिन-चिलिधिल-रुहिर-चिक्खल्ल-दुई-सण-जंबालपंक-वीभच्छघोर-गब्मावासेसुकढ-कढ-कटेंत-चलचलचलस्स टल-टल-टलस्स रझं-तसंपिंडियंगमंगस्स सुइरं नियंतणाजे उणंएवं विहिं फासेजा नो णं मणयं पिअइयरेजा जहुत्त-विहाणेणं चेवपंच-मंगल-पभिइ-सुय-नाणस्स विनओवहाणं करेजासेणंगोयमा नो हीलेज्जा सुत्तंनोहीलेखा अत्यं नो हीलेज्जा सुत्तत्योभए से णं नो आसाएजा तिकाल-भावी-तिक्खरे नो आसाएज्जा तिलोगसिहरवासी विसूय-रय-मलेसिद्धे नोआसाएजाआयरिय-उवल्झाय साहुणो सुट्टयांचेवभवेजा पिय-धम्मे दढ-धम्मे भत्ती-जुत्ते एगंतेनं भवेजा सुत्तत्थणुरंजियमाणस-सद्धा-संवेगमावन्ने से एसणं न लभेजा पुणो पुंणो भव-चारगे गब्म-वासाइयं अनेगहा जंतनं ति। __ मू. (६०१) नवरं गोयमा जे णं बाले जाव अविन्नाय-पुन्न-पावाणं विसेसे ताव णं से पंचमंगलस्सणंगोयमा एगंतेनंअओग्गेन तस्स पंचमंगल-महा-सुयक्खधंदायव्वंनतस्सपंचमंगलमहासुयक्खंधस्स एगमवि आलावगं दायव्वं जओ अनाइ-भवंतर-समजियाऽसुह-कम्म-रासिदहणट्ठमिणं लभित्ताणंबाले सम्मामाराहेज्जा लहुत्तंच आणेइता तस्स केवलं धम्म-कहाएगोयमा भत्ती समुष्पाइजइतओनाऊणंपिय-धम्मंदढ-धम्मभत्ति-जुत्तंताहे जावइयं पच्चक्खाणं निम्बाहेडं समत्थो भवति तावइयं कारविजइ राइ-भोयणं च दुविह-तिविह-चउविहेण वा जहा-सत्तीए पञ्चक्खाविजइ।
म. (६०२) तागोयमाणंपणयालाए नमोक्कार-साहियाणंचउत्थंचउवीसाए पोरुसीहिं बारसहिं पुरिमड्डेहिं दसहि अवहेहिं तिहिं निव्वीइएहिं चउहि एगट्ठाणगेहिं दोहिं आयंबिलेहिं एगेणं रूगमेवाऽऽयंबिलंमास-खवणं विसेसेज्जा तओयजावइयंतवोवहाणगंवीसमंतोकरेजा तावइयं अनुगणेऊणं जाहे जाणेजा जहा णं एत्तियमेतेणं तवोवहाणेणं पंचमंगलस्स जोगीभूओ ताहे आउत्तो पढेजा न अत्रह त्ति।
म. (६०३) से भयवं पभूयं कालाइक्कम एयं जइ कदाइ अवंतराले पंचत्तमुवगच्छेज्जा तओ नमोकार विरहिए कहमुत्तिमटुंसाहेागोयमाजंसयंचेव सुत्तोवयारनिमित्तेणं असढ-भावत्ताए जहा-सत्तीए किंचि तवमारभेजा तं समयमेव तमहीय-सुत्तत्योभयं दृट्ठव्वं जओ णं सो तं पंचनमोक्कारं सुत्तत्थोभयं न अविहीए गेण्हे किंतु तहा गेण्हे जहा भवंतरेसुं पि न विप्पणस्स एयज्झवसायत्ताए आराहगो भवेजा।
म. (६०४) से भयवंजेनं उण अन्नेसिमहीयमाणाणं सुयायवरणक्खओवसमेणं कन्नहाडित्तणेणं पंचमंगल-महीयं भवेजा से विउ किंतवोवहाणंकरेजा गोयमा करेजा से भयवं केन अटेणं गोयमा सुलभ-बोहि-लाभ-निमित्तेणं एवं चेयाई अकुव्वामाणे नाणकुसीले नेए।
भू. (६०५) तहा गोयमाणं पव्वजा दिवसप्पभिईए जहुत्त-विहिणो वहाणेणंजे केइ साहु वा साहुणी वा अपुब्ब-नाण-गहणं न कुजा तस्सासई चिराहियं सुत्तत्थो भयं सरमाणे एगग्ग-चित्ते पढम-चरम-पोरिसिसु दियाराओय नाणु गुणेज्जा सेणंगोयमा नाण कुसीले नेए से भयवंजस्स अइगुरुय नाणावरणो दएणं अहन्निसं पहोसे माणस्स संवच्छरेण वि सिलोग बद्धमवि नो पिर परिचियं भवेज्जा से किं कुजा गोयमा तेना विजावजीवाभिग्गहेणंसज्झाय-सीलाणं वेयावच्चंतहा अनुदिनं अड्वाइजे सहस्से पंचमंगलाणं सुत्तत्योभए सरमाणेगग्ग मानसे पहासेज से भयवं केणं
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