Book Title: Agam Sutra Satik 39 Mahanishith ChhedSutra 6
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan

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Page 54
________________ अध्ययनं ३, उद्देशक : १७३ थिर-परिचियं-काऊणंतओइरियावहियं अज्झीए। मू. (५९३) से भयवं कयराए विहीए तं इरियावहियमहिए गोयमा जहा णं पंचमंगलमहासुयक्खंधं । म. (५९४) सेभयवंइरियावहियमहिञ्जित्ताणंतओकिमहिज्जेगोयमा सक्कथयाइयंचेइयवंदनविहाणनवरंसकत्थयंएगट्ठम-बत्तीसाएआयंबिलेहिं अरहंतत्थयंएगेणंचउत्थेणंतिहिं आयंबिलेहिं चउवीसत्ययं एगेणं छद्रेणं एगेणं य चउत्येणं पणुवीसाए आयंबिलेहिं नाणत्ययं एगेणं चउत्थेणं पंचहिआयंबिलेहिं एवं सर-वंजन-मत्ता बिंदु-पयच्छेय-पयक्खर-विसुद्ध अविच्चा-मेलियंअहीएत्ता गंगोयमातओकसिणंसुत्तत्थं विन्नेयंजस्थय संदेहं भवेजातंपुणोपुणो वीमंसियनीसंकमवधारेऊणं नीसंदेहं करेजा। मू. (५९५) एवं सं सुत्तत्थोभयत्तगं चिइ-वंदना-विहाणं अहिज्जेत्ताणं तओ सुपसत्थे सोहणे तिहि-करण-मुहुत्त-नक्खत्त-जोग-लग्ग-ससी-बले जहा सत्तीए जग-गुरुणंसंपाइय-पूओवयारेणं पडिलाहियसाहुवग्गेण य भत्तिभरनिब्मरेणं रोमंच-कंचुपुलइज्जमाणतनू सहरिसविसट्ट वयणारविदेणं सद्धा-संवेग-विवेग-परम-वेग्ग-मूलं विणिहय-घनराग-दोस-मोह-मिच्छत्त-मलकलंकेण सुविसुद्ध-सुनिम्मल-विमल-सुभ-सुभ-यरऽनुसमय-सुमल्लसंत-सुपसत्यज्झवसाय-गएणं भुवणगुरु-जिनयंद पडिमा विनिवेसिय-नयन-मानसेणं अनन्न-मानसेगग्ग-चित्तयाए य धन्नो हं पुन्नो हंति जिन-वंदनाइ-सहलीकयजम्मोत्तिइइमन्नमाणेणं विरइय-कर-कमलंजलिणाहरिय-तणबीय जंतु-विरहिय-भूमीएनिहिओभय-जाणुणासुपरिफुड-सुविइय-नीसंक जहत्य-सुत्तत्योभयंपए पए भावेमाणेणंदढचरित्त-समयन्नु-अप्पमायाइ-अनेग-गुण-संपओववेएणं गुरुणा सद्धि साहुसाहुणिसाहम्मिय असेस-बंधु-परिवग्ग-परियरिएणंचेवपढमंचेइएवंदियबेतयनंतरंचगुणड्डेय साहुणो यतहासाहिम्मय-जणस्सणंजहा-सत्तीएपणावाए जाएणंसुमहग्य मउय-चोक्खवस्थ-पयाणाइणा वामहासम्मणो कायव्वोएयावसरम्मिसुविइय-समय-सारेणगुरुणापबंधेणंअक्खेव-विक्खेवाइएहिं पबंधेहि संसार-निव्वेय-जणणि सद्धा संवेगुप्पायगंधम्म-देसणं कायव्वं । म. (५९६)तओपरम-सद्धा-संवेगपरं नाऊणं आजम्माभिग्गहंचदायव्वंजहाणंसहलीकय. सुलद्ध-मनुय भव भो भो देवानुप्पिया तए अञ्जप्पभितीए जावजीवंति-कालियं अनुदिनं अनुलावलेगग्गचित्तेणं चेइए वंदेयब्वे इणमेव भो मनुयत्ताओ असुइ-असासय-खणभंगुराओ सारं ति तत्थ पुव्वण्हे ताव उदग-पानं न कायव्वं जाव चेइए साहू य न वंदिए तहा मज्झण्हे ताव असनकिरियं न कायव्वं जावचेइए न वंदिए तहा अवरण्हे चेव तहा कायव्वं जहा अवंदिएहिं चेइएहिं नो संझायालमइक्कमेना। म. (५९७) एवं चाभिग्गहबंध काऊणं जावजीवाए ताहे य गोयमा इमाए चेव विजा ए अहिमंतियाओ सत्त-गंध-मुट्ठीओ तस्सुतमंगे नित्थारग पारगो भवेजासि त्ति उच्चारेमाणेणं गुरुणा धेतब्बाओअओम् नम्ओ भगवओअरहओ सइज्झ उम्ए भगवती महा विज्ज् आ ईएम ह् आ व्ई एज य व्ई र एस् एण्अव्ईरए वद्ध म् आण व ईए जय् अंत्ए अपआ ज्इए स्वआ हा (ओम् नमो भगवओ अरहओ सिज्झउ मे भगवती महाविजा वीरे महावीरे जयवीरे सेणवीरे बद्धमाणवीरे जयंते अपराजिए स्वाहा) उपचारोचउत्थभत्तेणं साहिज्जइ एयाए Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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