Book Title: Agam Sutra Satik 39 Mahanishith ChhedSutra 6
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan

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Page 53
________________ १७२ महानिशीथ-छेदसूत्रम् -३/-/५८८ तत्तो तत्तो विजने अइगरुयं मानसं पीइं॥ मू. (५८९) एवमिह अपत्यावे वि भत्ति-भर-निब्मराण परिओसं । जणयइ गरुयं जिण-गुण-गहणेक्क-रसक्खित्त-चित्ताणं ।। मू. (५९०) एवं तु जं पंचमंगल-महासुयक्खंधस्स वक्खाण तं महया पबंधेणं अनंत-गमपज्जवेहिं सुत्तस्सयपिहब्भूयाहिं निजुत्ती-भास-चुन्नीहिंजहेव अनंत-नाण-दंसण-धरेहिं तित्थयरेहिं वक्खाणियंतहेवसमासओवक्खाणिजंतंआसिअहन्नयाकाल-परिहाणि-दोसेणंताओ निजुत्तीभास चुन्नीओ वोच्छिन्नाओ इओ य वच्चंतेनं काल समएणं महिड्डी-पत्ते पयानुसारी वइरसामी नाम दुवालसंगसुयहरे समुप्पन्ने तेने यं पंच-मंगल-महा-सुयक्खंधस्स उद्धारो मूल-सुत्तस्स मज्झे लिहिओमूलसुत्तंपुन सुत्तत्ताएगणहरेहिं अस्थत्ताएअरहंतेहिं भगवतेहिधम्म-तित्थंकरहिं तिलोगमहिएहिं वीर-जिनएहि वीर-जिणिएहिं वीर-जिणिंदेहिं पन्नवियं ति एस वुडसंपयाओ। मू(५९१) एत्य य जत्य पयं पएणाऽनुलग्गं सुत्तालावगं न संपज्जइ तत्थ तस्य सुयहरेहि कुलिहिय-दोसो न दायव्यो ति किंतु जो सो एयस्स अचिंत-चिंतामणी-कप्पभूयस्स महानिसीहसुयक्खंधस्सपुव्वायरिसोआसितहिंचेवखंडाखंडीए उद्देहियाइएहिं हेऊहिं बहवेपन्नगापरिसडिया तहा वि अचंत-सुमहत्याइसयं ति इमं महानिसीह-सुयक्खधं कसिण-पवयणस्स परमसार-भूयं परंतत्तं महत्थं ति कलिऊणं पवयण-वच्छल्लत्तणेणं दिलुतं सव्वं स-मतीए साहिऊणं लिहियं ति अन्नेहिंपिसिद्धसेनदिवाकर-वुड्वाइ-जक्खसेन-देवगुत्त-जसवद्धण-खमासमण-सीस-रविगुत्तनेमिचंद-जिनदासगणि-खमग-सच्चरिसि-पमुहेहिं जुगप्पहाण-सुयहरेहिं बहुमन्नियमिणं ति । मू. (५९२) से भयवं एवंजहुत्तविनओवहाणेणंपंचमंगल-महासुयक्खंधमिहिज्जित्ताणंपुब्वानुपुवीएपच्छानुपुब्बीएअनानुपुब्बीएसर-वंजण-मत्ता-बिंदु-पयक्खर-विसुद्धंथिर-परिचियंकाऊणं महया पबंधेणं सुत्तत्यं च विनाय तओ य णं किमहिजेजा गोयमा इरियावहियं से भयवं केणं अटेणं एवं बुच्चइजहाणंपंचमंगल-महासुयक्खंधमहिज्जित्ताणं पुणो इरियावहियं अहीए गोयमा जे एस आया से णं जया गमनाऽगमनाइपरिणए अनेग-जीव-पान-भूय-सत्ताणं अनोवउत्तपमत्ते-संघट्टणअवद्दावण-किलामणं-काउणं अनालोइय-अपडिक्कतेचेव असेस-कम्मक्खयट्ठयाए किंचि चिइ-वंदनसम्झाय-ज्झाणाइएसुअभिरमेजा तयासे एग-चित्तासमाही भवेजानवाजओ णंगमनागमनाइ-अनेग-अन्न-वावार-परिणामासत्त-चित्तत्ताए केईपाणीतमेव भावंतरमच्छड्डियअट्ट-दुहट्टन्झवसिए कं चि कालं खणं विरत्तेज्जा ताहे तं तस्स फलेणं विसंवएज्जा जया उ न कर्हि चि अन्नाण-मोह पमाय-दोसेण सहसा एगिदियादीणं संघट्टणं परियावणं वा कयं भवेज्ञा तया य पच्छाहाहाहादुटुकयम्महेहि तिघणराग-दोस-मोह-मिच्छत्त-अन्नाणंधेहिं अदिट्ठ-परलोगपञ्चवाएहिं कूर-कम्मनिग्धिणेहिं ति परम-संवेगमावन्ने सुपरीफुडं आलोएत्ताणं निंदित्ताण गरहेत्ताणं पायच्छित्तमनुचरेत्ताणंनीसल्ले अणाउलचित्तेअसुह-कम्मक्खयट्ठा किंचिआय-हियंचिइ-वंदनाइ अनुडेजा तया तयट्टे चेव उवउत्ते से भवेजा जया णं से तयत्ये उवउत्तो भवेज्जा तया तस्स णं परमेगग्ग-चित्तसमाही हवेज्जा तया चेव सब्ब-जग-जीव-पान-भूय-सत्ताण जहिट-फलसंपत्तीभवेज्जा तागोयमाणंअप्पडिकंताएइरियावहियाएनकप्फइचेव काउंकिंचिचिइवंदनं-सज्झायाइयं फलासायमभिकंखुगाण एतेनं अटेणं गोयमाएवं वुच्चइ-जहाणंगोयमा ससुत्तत्योभयं पंचमंगल Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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