Book Title: Agam Sutra Satik 39 Mahanishith ChhedSutra 6
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan
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अध्ययन :३, उद्देशक:
१६५
परमच्छेरय-संदोहं सम-गाल मेवेगट्ठसमुइयंदिट्ठतितक्खणुप्पन्न घण-निरंतर-बहलमप्पमेयाचिंतअंतासहरिस-पीयाणुरायवस-पवियंभंतानुसमय-अहिनवा-हिनव-परिणाम-विसेसत्तेणं मह मह महं ति जंपिर-परोप्पराणं विसायमुवगयं ह ह ह धी धिरत्यु अधन्ना अपुन्ना वयं इइ निंदिरअत्ताणगमनंतर-संखुहिय-हियय-मुच्छिर-सुलद्ध-चेयण सुन्न-वुन्न-सिढिलिय-सगत्त-आउंचनपसारणा-उम्मेस-निमेसाइ-सारिरिय-वावार-मुक्क-केवलं अनोवलक्ख-खलंत-मंद-मंद-दीह-हूहुंकारविमिस्स-मुक्क-दीहुण्ह-बहल-नीसासेगत्तेणंअइअभिनिविठ्ठ-बुद्धीसुनिच्छिय-मनस्सणंजगस्स किं पुन तं तवमनुचेडेमो जेनेरिसं पवररिद्धिं लभेज त्ति तग्गय-मनस्स णं दंसणा चेव निय-नियवच्छत्थल-निहिपंत-करयलुप्पाइय-महंत-माणस-चमक्कारेतागोयमाणंएवमाइ-अनंत-गुणगणाहिडिय-सरीराणं तेसिं सुगहिय-नामधेजाणं अरहंताणं भगवंताणं धम्मतित्थगराणं संतिए गुणगणो-हरयण-संदोहोह-संघाए अहन्निसाणुसमयंजीहा-सहस्सेणं पि वागरंतोसुरवई विअन्नयरे वा केई चइनाणी माइसईय-छउमत्थेणं सयंभुरमणोवहिस्स व वास-कोडीहिं पि नो पारं गच्छेज्जा जओणं अपरिमिय-गुण-रयणे गोयमा अरहते भगवंते धम्मतित्थगरे भवंति ता किमित्यं भन्नउ जत्थ यणं
-तिलोग-नाहाणंजग-गुरुणं-भुवणेक्क-बंधूणं तेलोक-लग्गणखंभ-पवर-वर-धम्मतित्थगंराणं केइ सुरिदाइ-पायंगुढग्ग-एग-देसाओ अनेगगुणगणालंकरियाओ भत्ति-भरणिभरिक्क-रसियाणं सब्वेसि पिवासुरीसाणं अनेग-भवंतर-संचिय-अणिठ्ठ-दु-टुकम्म-रासी-जणिय-जोगच्च-दोमनसादि-दुक्खदारिद्द-किलेस-जम्म-जरा-मरण-रोग-सोपग-संतावुव्वेग-वाहिवेयणाईणखयट्ठाए एगगणस्साणंत-भागमेगं भणमाणाणंजमग-समगमेव दिनयरकरे इ वाणेग-गुण-गणोहे जीहग्गे वि फुरंति ताइंच न सक्कासिंदा वि देवगणा समकालं माणिऊणं किं पुन अकेवली मंस-चक्खुणोता गोयमाणं एस एत्थ परमत्ये वियाणेयव्वां जहा-णं जइ तिस्थगराणं संतिए गुण-गणोहे तित्थयरे चेव वायरंति नउणअन्नेजओणं सातिसया तेसिं भारती, अहवागोयमा किमेस्थ पभूय-वागरणेणं सारत्यं भन्नए। (तं जहा)मू. (४९५) नाम पि सयल-कम्मट्ट-मल-कलंकेहिं विप्पमुक्काणं ।
तियसिद चिय-चलणाण जिन-वरिंदाणजो सरइ। मू. (४९६) तिविह-करणोवउत्तोखणे खणे सील-संजमुजुत्तो।
अविराहिय वय-नियमो सो वि हुअइरेण सिज्झेजा ।। मू. (४९७) जो उन दुह-उब्विग्गो सुह-तण्हालू अलि व्व कमल-वणे।
थय-थुइ-मंगल-जय-सद्द-वावडो रुणु रुणे किंचि॥ म. (४९८) भत्ति-भर-निभरो जिम-वरिंद-पायारविंद-जुग-पुरओ।
भूमी-निट्ठविय-सिरो कयंजली-वावडो चरित्तदो।
एकंपि गुणं हियए धरेज संकाइ-सुद्ध-सम्मत्तो।
अक्खंडिय-वय-नियमो तित्थयरत्ताए सो सिज्झे॥ मू. (५००)जेसिंचणंसुगहिय नामग्गहणाणंतित्थयराणंगोयमाएसजग-पायडेमहच्छेरयभूए भुयणस्स वि पयडपायडे महंताइसए पवियंभे तंजहा
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