Book Title: Agam Sutra Satik 39 Mahanishith ChhedSutra 6
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan
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अध्ययनं : २, उद्देशक : ३
भू. (३७१)
मू. (३७२)
मू. (३७३)
मू. (३७४)
पू. (३७५)
मू. (३७६)
भू. (३७७) ठियासणत्था सइया परंमुही सुयलंकरिया वा अनलंकरिया वा । निरक्खमाणापमयाहिदुब्बलं मनुस्समालेह गयाविकरिस्सई ।। चित्त-भित्तिं न निज्झए नारिं वा सुयलंकियं ।
भू. (३७८)
भू. (३७९)
मू. (३८०)
भू. (३८१)
समाणी - कुट्ठवाहीए तमवित्थीयं दूरयरेणं बंभयारी विवज्जाए || थेर-भज्जा य जा इत्थी पञ्चंगुडभड-जोव्वणा । जुन्न- कुमारिं पउत्थवई बाल-विहवं तहेव य ॥ अंतेउरवासिनी चैव स पर पासंड-संसियं । दिक्खियं साहुणी वा वि वेसं तह य नपुंसगं ॥ कहि गोणि खरं चैव वडवं अविलं अवि तहा। सिप्पित्थि पंसुलि वा वि जम्मरोगि महिलं तहा ।।
मू. (३८२)
मू. (३८३)
मू. (३८४)
चिरे संसट्टमचेल्लिकं- एमादीपावित्थिओ | पगमंती जत्थ रयणीए अह पइरिक्के दिनस्स वा ।। तं वसहि सन्निवेसं वा सव्वोवाएहिं सव्वहा । दूरयर- सुदूर-दूरेणं बंभयारी विवञ्जए । एएसिं सद्धिं संलावं अद्धाणं वा वि गोयमा । अन्नसुं वा वि उत्थी खणद्धं पि विवज्जए ।
पू. (३८५)
मू. (३८६ ) से भयवं किमित्थीणं नो णं निज्झाएजा गोयमा नो णं निज्झरूज्जा से भयवं किं सुनियत्थं वत्थालंकरिय-विहूसियं इत्थीयं नो णं निज्झाएजा उयाहु णं विनियंसणि गोयमा उभयहा विणं नो निज्झएज्जा से भयवं किमित्थीयं नो आलवेज्जा गोयमा नोणं आलवेज्जा से भयवं किमित्थीसुं सद्धिं खणद्धमवि नो संवसेज्जा गोयमा नो णं संवसेज्जा से भयवं किमित्थीसुं सद्धिं नो अद्धाणं
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कुंथू-पय-फरिस - जणियं पि दुक्खं न अहियासिउं तरे । ता तं महदुक्ख संघ कह नित्यरिह सुदारुणं ।। नारय-तेरिच्छ दुक्खाओ कुंथु जाणियाउ अंतरं । मंदरगिरि - अनंत-गुणियस्स परमानुस्सा वि नो घडे ॥ चिरयाले संसुहं पाणी कंखतो आसाए निव्दुओ । भवे दुक्खमईयं पिसरतो अनंत-दुक्खिओ ।। बहु- दुक्ख संकट्ठेत्थं आवया लक्ख परिगए । संसारे परिवसे पाणी अयडे महु-बिंदू जहा ॥ पत्थापत्थं अयाणंते कजाकज्जं हियाहियं । सेव्वो सेव्यमसेव्वं च चरणिज्जा चरणिज्जं तहा ॥ एवइयं वइयरं सोचा दुक्खस्संत- गवेसिणो । इत्थी - परिग्गहारंभे चेचा घोरं तवं चरे ॥
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भक्खरं पिव दङ्कणं दिट्ठि पडिसमाहरे ॥ हत्थ-पाय-पडिच्छिन्नं कन-नासोट्ठि-वियप्पियं ।
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