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पुस्त। 3
तीसरा पत्थर साधुपणा - चारित्ररूप अब संख्याता सागरोपभ कम हुआ, संख्याता सागरोपम कम हुए विना कभी साधुपणा नहीं आता हैं. दोंसे नव पल्योपम तक श्रावकपणा ठेरता है.
नब पल्योपममें बडासे बडा श्रावक कममें कम साधुपणा संख्याता सागरोपम के बाद होता है. एक ही सानरोपमका पल्योपम किया जाय तो दश कोडाकोड. होता है.
क्रोडकुं क्रोडसे गुणो फेर दश पल्योपम से गुणो ऐसे संख्याता सागरोपम जब तुट जाय तब माधुपणा मिलता हे, द्रव्यसें ओर भाबसें १. अभव्य जीव द्रव्य चारित्र लेवे तब ६९ कोटाकोटि तोडता हे मोहनीयकर्मकी इतनी स्थिति काटता हे. द्रव्य चारित्र याने ?
यहाँ यह सवाल हो सकता है कि-द्रव्यसें स्थिति तोडता हे हो साधुपणा क्यों मानता हे ? ____ अज्ञानी लडके के हाथमे कोहीनूर आया तो भाग्यशाली कहेगे. इसी तरहसे इधर धरमकी करणी द्रव्यसे प्राप्त हुइ वह नशीबदार जरुर है. द्रव्यचारित्रयदि न मानें तो नवग्रैवेयक तक अभव्य जाता है, वह कैसे ? पौङ्गलिक सुखकी अपेक्षासे भी जो चारित्र पाल रहा है उस चारित्रकुं द्रव्य चारित्र कहना पडेगा. आत्मा करमसें भारी हे उसकुं हलुकर्मी बनाना है. जो आत्मा हलुकर्मी नहीं होगा तो फिर मोक्ष कैसे पायगा, कर्मक्षयका ख्याल द्रव्यचारित्रवालेकुं नहीं होता है.
द्रव्यचारित्र जो कहा है उसके भी प्रभावसे नव ग्रैवेयक तक जायगा द्रव्यचारित्रवाले की नरक तिर्यंच गति नही होती है - मोक्ष तो उसकुं नहिं चाहिए, द्रव्य चारित्रवालेकुं मोक्षका विचार नहीं है. दुःखकुं दूर करनेके लिये चाहता है वह उसकुं मिल जाता है - पौद्गलिक सुख उसकुं मिल जाता है.