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पुस्त। 3बंध-निर्जरा का समय
हरेक समय जीवको कर्मका बंध और निर्जरा दोनों एक साथ मानी जाती हैं. कोइभी जीवको प्रतिसमय निर्जरा ओर बंध दोनों ही हो रहा है, पूर्व कालका कर्म भोगता है. भोगते कै समय निर्जरा जरूर होती हैं. कर्मका भोक्ता हरे समय होता है. अपन मनुष्यका आयुष्य, देवता देवगतिका आयुष्य हरे समय भोगता है. उस वखत जरूर निर्जरा करता है बंधन. संस्थान-संहनन वर्णादिक सब कर्मकुं भोगते है. इतनी निर्जरा जरूर करते हैं.
सूक्ष्म एकेन्द्रियकुं लेंगे तो वो मी हरे समय निर्जरा करता है. करम भोगने के समय निर्जरा करता है. अब निर्जरा मान ली. बंध भी साथमें मान लेना पडेगा.
जव तक ए जीव चलायमान होता है, कुछ भी क्रिया करता है, आंखकी पापणकुं चलाता है, उतनी क्रिया करनेवाला भी ८-७-६-१ कर्मका बंध करता है. लेकिन वह जीव कभी अबंधक नही मनाता हे. पेस्तर का कर्म उदयमें आता हे उसकी निर्जरा होती है. बंध भी हर समय होता है, बंध और निर्जरा एक समय हर गुणस्थानक पर मानना पडता है, तो गिरेगा या चडेगा. बंध ओर निर्जरा दोनों साथ रहेगा तो गिरेगा कि चडेगा ? बंध निर्जरा का व्याव० दर्शन ___कोठारमें धान भरा हुआ है मणो बंध निकालता है - शेर भर डालता हे - जरुर वह कोठार खाली हो जायगा, एक आदमी शेर भर निकालता हे - मण डालता है, शेर डालता हे शेर निकालता हे - शेर निकालता हे ओर कुछ भी डालता नहीं है, तो मण काढनेवाला यदि कुछ भी नहीं डालता है तो जलदी खाली हो जायगा, इसी तरहसे ए कोठारमे करमका डालना ओर निकालना होता हे.