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पुस्त 3मोक्षमार्गकी आवश्यक बातें
असली बात सोच लें. मोक्षकी सडक महात्माओंने बतलाई हे, प्रथम सम्यक्त्व ओर आगे नव पल्योपम देशविरति, उससे आगे चलो तो सर्वविरति वीतराग दशा ओर उपशम श्रेणि क्षपक श्रेणिका क्रमशः पत्थर है धांचीका बेल पूरा दिन चले तो भी उसकुं मालुम नही हैं कितना आया और कितना रहा ! चलना सीखा है, बस चलना इसी तरहसे मोक्ष शब्द सुनके चलना पकडा है. अब मोक्ष कितना दूर है मालुम नहीं हैं मोक्षके लिये प्रयत्न करता है मगर मोक्ष कितना शेष रहा ए मालुम नही है. पहेला पत्थर आया है या एक पत्थर शेष रहा है ? अब मोक्ष कितना दूर रह गया ? आदि. पहले पत्थरसे मालुम हो जाय. तीसरे पत्थरसे संख्याता सागरोपम निकल गया, वीतराग पत्थरमें घाती करम सब खतम हुआ.
बात सच्ची! पत्थर ख्यालमें आवे जब बात अच्छी, हमारे लिये किस कामको ? सब शास्त्रकारोनें लिख दिया है. किंतु हमें कुछ दिमागमें उतरे तब न ? तो वहां यह समझना चाहिए कि जिस रास्तेमें मुसाफरी करनी पडती हे उसकी लिपि जरुर जाननी चाहिये. ए मोक्षकी सडक पर चलते हैं, तो मोक्ष जानने वालोंने जो लिपि लिखी है उसकुं जरुर जानना चाहिये.
पापकुं पाप पिछाणे यह तो है प्रथम - पत्थर ! शब्द तो बडा सहेला है पापकुं पाप मंजुर करनेमें कोइ ना तो नहीं कहेंगा, सारा जगत पापकुं पाप मानता है, लेकिन पापकुं समजे जब पाप माने न ?
पागल के हाथमें आई हुई समशेर सबकुं काटेगी, चाहे मित्र हो शत्रु हो ! माँ हो बाप हो! दीकरी हो पत्नी हो ! वह कुछ नहीं जानता है. अज्ञानीके हाथमें पाप शब्द आया तो सबकुं बुरा कहता है, मगर पापको पहचानता बहुत मुश्केल है. पापकुं जो पहाचानता नही है अगर पाप शब्दकुं पकड लिया तो कहो के पागलके हाथमें शमशेर आई.