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આગમત पापकी मार्मिक पहचान ही सम्यक्त्व है।
यद्यपि यह भी सम्यक्व पानेकी पूर्वभूमिका है लेकिन लडकेकुं हिसाबका ख्याल नही है. लडके की वात जाने दो ! अपन बडेकी बात करें. रोज अरिहंतकी पूजा करते हैं, साधुकुं वांदते हे, हम जैन है, इस हिसाबसे देव गुरु और धर्म मानते हैं, अढारह दोषसे रहित देव होते हैं पेस्तर सोचोके अढार दोषकुं दोष तरीके समजो अष्टादश दोषका अभाव होनेसे अरिहंत माने जाते हैं. "अण्णाण कोह माण" इत्यादि. अज्ञान जो ते यह प्रथम दोषहै.
ओर दूसरा मद-अहंकार वह भी दोष है, इन दोषों को में आधीन हुं यह तुम्हारे ख्यालमें आना चाएिभ ओर जिसको दोष न होवे वो जिनेश्वर देव कहलाते हैं, तीर्थंकर महाराज अढार दोष रहित है मगर ए अढार दोषकुं दोष न माने तो क्या हालत होगी ? अढार दोष को गुण मानो तो तुम्हारे हिसाबसे तीर्थंकरकुं भी मूर्ख मानना पडे. प्रेम-क्रीडा-हास्य इन सबकुं आप दुष्ट मानते है क्या ! एक माणस अपनी पर प्रेम नहीं रखता है. तो क्या प्रेम चीज नहीं है ? गुप चुप बेठ रहें क्या दो घडी हँसना - नहीं हो क्या ? ए अपने लिये बेकार. अब सोचिये खुश नहीं होता है, इतना प्रयत्न किया परा खुश नहीं होता है. अब सोचो इनकुं अपन हास्य प्रेम ओर रतिकुं दोष मानते हैं ? दोष नहीं मानते हैं मगर अच्छा माना. तो जिनेश्वर भगवंतोंने अच्छे कुं निकाल दिया है. तीर्थंकरोंने गलती की कि अच्छेकुं छोड दीया, उत्तमतोवह जो बुरे को छोडे पर अच्छेकुं न छोडे. अपने हिसाबसे अच्छे कुं जिनेश्वरोने छोड दिया इसके लिये दीलगीरी होनी चाहिये तीर्थंकरका दर्शन करके उसके उपर दीलगीरी आनी चाहिये. पर तीर्थंकरोंने जो छोड दिया है वह शास्त्रदृष्टि से बरोबर है वे सब दोष है इनकुं छोडी अच्छा किया. हास्यादिककुं दोषके हिसाबमें डालो तो तीर्थंकरका तीर्थंकरपणा है जब हास्यादिक सबकुं दोषरूप पिछाणो तब क्या हुवा ? शुद्ध देवकुं शुद्ध देव मानने पर भी दोषकुं दोष मानना पडता है. जो दोषकुं दोष नहीं मानें तो जिनेश्वर भगवंतने कुलके रिवाजके अनुसार यह मानता है इतना ही कहाता है.