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वेद धर्म में भी ब्रह्म जिज्ञासु की योग्यता के चार लक्षण बताये
विवेकिनो निरालस्य शमादि गुणशालिनः । मुमुक्षोरेव हि ब्रह्मजिज्ञासा योग्यता मता ॥ ( विवेक चूडामणि )
अर्थात् विवेक, वैराग्य, शमादि ष ब्रह्मजिज्ञासु के लक्षण हैं। जब तक इतने तब तक वह साधक ब्रह्मप्राप्ति के योग्य नहीं हो सकता ।
संपत्ति और मुमुक्षत। ये चार गुणों का पूर्ण विकास न हो
बौद्ध धर्म में मी चार आर्यसत्य बता कर दुःख, समुदय, मार्ग और निरोध इन चार गुणों को जो साधक विवेक पूर्वक धारण करता है वही अंत में निर्वाण का अधिकारी होता है इस बात की पुष्टि करता है ।
इस प्रकार भारतवर्ष के ये तीन प्राचीनतम धर्म तत्त्वतः परस्पर में भिन्न २ होने पर भी एक ही मार्ग दिशा के सूचक हैं यह देख कर
ऐसे धर्म समन्वय करने वाले समन्वय के इस जमाने में मान्य न होग ?
धर्मसूक्तों को करने के लिये
बुद्धिवाद एवं सर्वधर्म कौनसा जिज्ञामु तैयार
टीकाएं
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दशवेकालिक सूत्र की निम्न लिखित टीकाएं हो चुकी हैं :इस ग्रंथ पर सबसे अधिक प्राचीन श्री भद्रबाहु स्वाभि को नियुक्ति है, उनके बाद श्री हरिभद्रसूरि की टीका और समयसुन्दर गणि की दीपिका है । ये तीनों टीकाएं बडी ही सुन्दर एवं सर्वमान्य हैं । इनके बाद सुमति सूरि की लघु टीका, श्री तिलोक सूरि की प्राकृत चूर्णि
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