Book Title: Agam 42 Mool 03 Dashvaikalik Sutra
Author(s): Saubhagyamal Maharaj
Publisher: Sthanakvasi Jain Conference

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Page 225
________________ रतिवाक्य चूलिका से गिरकर जमीन पर चित्त लेट जाता है तब वह खडे मनुष्य की अपेक्षा अत्यन्त नीचा दिखाई देता है और साथहीसाथ वहां से गिरनेके कारण चीट खाता है सो अलग। ठीक यही हालत तपमार्गसे भ्रष्ट साधुकी होती है 1 ऐसे कहुए भविष्य के न इच्छुक साधक को चूर्ण द्वारा अपने मन का मैल दूर करना चाहिये, अंतःकरण को इतना तो साफ कर देना चाहिये आवागमन ही न हो पावे । सद्विचार एवं मंथन के पश्चात्ताप के साबुन से जिससे दुष्ट विचारोंका ऐसा मैं कहता हूं: इस प्रकार 'रतिवाक्य ' नामक प्रथम चूलिका समाप्त हुई । १५१

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