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रतिवाक्य चूलिका
से गिरकर जमीन पर चित्त लेट जाता है तब वह खडे मनुष्य की अपेक्षा अत्यन्त नीचा दिखाई देता है और साथहीसाथ वहां से गिरनेके कारण चीट खाता है सो अलग। ठीक यही हालत तपमार्गसे भ्रष्ट साधुकी होती है 1 ऐसे कहुए भविष्य के न इच्छुक साधक को चूर्ण द्वारा अपने मन का मैल दूर करना चाहिये, अंतःकरण को इतना तो साफ कर देना चाहिये आवागमन ही न हो पावे ।
सद्विचार एवं मंथन के पश्चात्ताप के साबुन से
जिससे दुष्ट विचारोंका
ऐसा मैं कहता हूं:
इस प्रकार 'रतिवाक्य ' नामक प्रथम चूलिका समाप्त हुई ।
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