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दर्शकालिक सूत्र
गमन की विधि
[३] भिक्षार्थी साधु अपने घरो की चार हाथ प्रमाण पृथ्वी पर अपनी दृष्टि बराबर फैलाकर वीज, वनस्पति, प्राणी, सचित्त जल तथा तचित्त मिट्टी से बचकर श्रागे वरावर देखकर उपयोगपूर्वक चले ।
. [४] पूर्वोक्त गुणों से युक्त साधु गड्डा श्रथवा ऊंची नीची विषम जगह, वृक्ष के ठूंठों अथवा कीचड से भरी जमीन को छोड देवे तथा यदि दूसरा अच्छा मार्ग हो तो गड्ढे (नाला आदि) को पार करने के लिये उस पर लकडी, तख्ता, पापाल आदि जडे हों तो उनके ऊपर से न जाय ।
[2] क्योंकि वैसे चिपम मार्गमें जाने से यदि कदाचित वह संयमी रपट जाय, या गड्ढे में गिर पडे तो उसले त्रस तथा स्थावर जीवोंको हिंसा होनेकी संभावना है ।
[६] इसलिये सुलमाधिवंत संयमी, यदि दूसरा कोई अच्छा मार्ग हो तो ऐसे विषम मार्गले न जाय । यदि कदाचित दूसरा अच्छा मार्ग ही न हो तो उस मार्ग में बहुत ही उपयोग पूर्वक गमन करे ।
टिप्पणी- उपयोगपूर्वक चलने से गिर पडने का डर नहीं रहेगा और न गिरने से त्र स्थावर की हिंसा भी न होगी। यदि वह संभालपूर्वक नहीं चलेगा तो उसके गिर पडने और उससे पृथ्वी, जल, वनस्पति जीवों की अथवा चोटी चोट आदित्रत जीवों को हिंता के साथ २ स्वयं को भी चोट पहुंचने का डर है ।
[७] गोचरी के लिये जाते हुए मार्ग में पृथ्वी कायिक प्राणियों की रक्षा के निमित्त राख के ढेर पर धान आदि के छिलकों के ढेरपर, गोबर के ढेरपर सचित्त रजसे भरे हुए पैरों सहित संयमी पुरुष गमन न करे और न उन्हें लांघे हो ।