Book Title: Agam 42 Mool 03 Dashvaikalik Sutra
Author(s): Saubhagyamal Maharaj
Publisher: Sthanakvasi Jain Conference

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Page 206
________________ भिक्षु नाम आदर्श साधु वैराग्यके उद्रेक से जब हृदय सुगंधित हो जाता है तभी उसमें त्याग के लिये प्रेमभाव पैदा होता है, तभी उसे त्यागकी लौ लगती है और वह मुमुक्षु किसी गुरुदेव को ढूंढकर त्यागमार्ग की विशाल वाटिकामें विहार करने लगता है और तभी वह आसक्ति तथा स्वच्छंदता के त्याग का निश्चय करके, प्रतिज्ञा पूर्वक अति कटिन नीतिनियमों का स्वीकार करता है। यावज्जीवन के लिये ऐसी तीन प्रतिज्ञा लेनेवाले त्यागी की आध्यात्मिक, धार्मिक, तथा सामाजिक दृष्टि बिन्दुओं से क्या २ और कितनी जवाबदारी है उसका इस अध्यायन में वर्णन किया है। गुरुदेव वोले:10] (बुद्धिमान पुरुषों के उपदेशसे अथवा अन्य किसी निमित्तसे) गृहस्थाश्रम को छोडकर त्यागी बना हुआ जो भिन्नु सदैव ज्ञानी महापुरुषों के वचनों में लीन रहता है, उनकी आज्ञानुसार ही आचरण करता है, नित्य चित्तसमाधि लगाता है, स्त्रियों के मोहजाल में नही फँसता और वमन किये हुए भोगोंको फिर भोगनेकी इच्छा नही करता वही आदर्श भिक्षु है।

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