Book Title: Agam 42 Mool 03 Dashvaikalik Sutra
Author(s): Saubhagyamal Maharaj
Publisher: Sthanakvasi Jain Conference

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Page 218
________________ दर्शकालिक सूत्रे टिप्पणी- यद्यपि गृहस्थाश्रम भी बहुत से उत्तम संयमी पुरुष होते हैं परन्तु वे बहुत कम—इक्के दुक्के ही होते हैं क्योंकि गृहस्थाश्रमका तमाम वाताः वरण ही ऐसा कलुषित होता है कि उसमें संयम की आराधना कर लेना कठिन बात 1 १७÷ 1 नश्वर है । इसमें अचानक श्राजाती है ( उस समय पदार्थ इस जीवका सहायक [1] हे श्रात्मन् ! फिर यह शरीर भी तो रोग उत्पन्न हो जाते हैं और मृत्यु धर्म के सिवाय और कोई भी नहीं होता ) [१०] और (गृहस्थाश्रम में ) अशुभ संकल्प विकल्प श्रात्मांका श्रध्यात्मिक मृत्यु करते रहते हैं । एक क्षण भी ऐसा नहीं सोते २ भी वह प्रतिदिन श्राध्या - एक शरीर छोट टिप्पणी - गृहस्थाश्रम में फँसे हुए जीवका होता जिसमें वह संकल्पविकल्पों से मुक्त हो । रात को हवाई किले बांधता बिगाडता रहता है । इन से वह दिन आत्मा की दृष्टिसे त्मिक मृत्यु को प्राप्त होता रहता है । कर दूसरे शरीर में जाना मृत्यु नहीं है क्योंकि श्रात्मा तो अमर है । शरीर छूट जाने से आत्मा नहीं मर जाती किन्तु श्रात्मा अपने स्वरूप के विरुद्ध विषयभोगों में आसक्त होने से अपने स्वरूप से च्युत हो जाती हैं, यही इसकी आध्यात्मिक मृत्यु हैं । आत्मा के लिये यह मृत्यु उस मृत्यु की अपेक्षा अधिक भयंकर एवं असह्य है । [११]. हे श्रात्मन् ! गृहस्थाश्रम कलेशमय है; सच्ची शांति तो त्याग [१२] गृहस्थावास बडा भारी बंधन है; सच्ची मुक्ति तो त्याग ही है। [१३] गृहस्थजीवनं दोषमय है, और संयमी जीवन निष्पाप, निष्कलंक एवं पवित्र है ।

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