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पिंढेपणा
की संधि के विभागों अथवा जलगृह (पानी रखने के स्थान) आदि शंकापूर्ण स्थानों को दूर ही से छोड दे अर्थात् चलते २ उक्त स्थानों की तरफ दृष्टि निक्षेप न करे।
टिप्पणी-ऐसे स्थानों को साभिप्राय (इष्टि गड़ा गड़ा कर) देखने से किसी को साधु के चोर होने की शंका हो सकती है। [१६] उसी प्रकार राजाओं, गृहपतियों, अथवा चरों (पुलिसों) के
रहस्य (एकांत वार्तालाप) के क्लेशपूर्ण स्थानों को भी दूर ही से छोड दे।
टिप्पणी-उक्त प्रकार के स्थानों पर सदैव गुप्त यंत्रणाएं, पडयंत्र की युक्ति प्रयुत्तियां होती रहती हैं। ऐसे स्थानों पर साधु के जाने से किती को उस पर अनेक तरह का संदेह हो सकता है। घरवाले यह शंका करेंगे कि यह व्यक्ति साधु वेशमें हमारा भेद लेने के लिये आता है और जन साधारण उसे वहां जाते देखफर मनमें समझेंगे कि शायद इसका भी गुप्त मंत्रणाओंमें हाथ है। इसी लिये ऐसे शंकापूर्ण स्थानोंमें साधु को गोचरी के निमित्त नहीं जाना चाहिये। [१७] गोचरी के लिये गया हुआ साधु लोक निपिद्ध कुलमें प्रवेश
न करे और जिस गृहपतिने स्वयं ही उसे वहां श्राने का निषेध किया हो कि 'हमारे घर न आना' उस घरमें तथा जिस घरमें जाने से वहां के लोगों को अप्रीति होती हो ऐसे स्थानों पर भी साधु गोचरी के निमित्त न जाय किन्तु जिस
कुलमें प्रेमभक्ति हो वहीं वह भिक्षार्थी मितु प्रवेश करे। [25] गृहस्थ के घर भितार्थ गया हुआ मुनि घर के मालिक की
अाज्ञाविना किवाडों को अथवा शण आदि के परदों को अथवा वांस आदि की चिक को न उघाडे और न उन्हें एक तरफ को खिस का चे ही।
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