Book Title: Agam 42 Mool 03 Dashvaikalik Sutra
Author(s): Saubhagyamal Maharaj
Publisher: Sthanakvasi Jain Conference

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Page 199
________________ - - विनयसमाधि और उसमें भी केवल आवश्यकतानुसार ही ग्रहण करके सन्तुष्ट रहता है और यदि कदाचित् कुछ न मिले तो भी जो पूर्ण सन्तुष्ट ही बना रहता है वही पूजनीय होता है। [६] किसी उदार गृहस्थसे धन प्रादिकी प्राप्तिकी प्राशासे लोहेकी. कीलोंपर चलना अथवा सो जाना सरल है किन्तु कानोंमें वाणों. की तरह लगनेवाले कठोर वचन रूपी कांटोंको विना किसी सार्थ के सहन करना अतिशय अशक्य है। फिरभी उनको जो कोई सह लेता है वही वस्तुतः पूजनीय है। [0] (कठोर वाणी लोहेके बाणोंसे भी अधिक दुःखद होती है) लोहे के कांटे तो मुहूर्त (दो घडी) भर ही दुःख देते हैं और उन्हें श्रासानीसे शरीरमें से निकाल कर फेंका भी जा सकता है किन्तु. कठोर बचनों के प्रहार हृदयके इतने आरपार हो जाते हैं कि उनको निकाल लेना आसान काम नहीं है और वे इतने गाढ वैर बांधनेवाले होते हैं कि उनसे अनेक अत्याचार और दुष्कर्म हो जाते हैं जिनका भयंकर परिणाम अनेक जन्मों तक नीची गतिमें उत्पन्न हो २ कर भोगना पड़ता है। टिप्पणी-अनुभवी पुरुषोंका यह कैसा अनुभवामृत है। एक कठोर वचन के परिणाममें करोड़ों आदमियोंका संहार होता है। एक कठोर बचनका ही यह परिणाम है कि इस पृथ्वीपर खूनकी नदियां वहने लगती हैं और धर्मकर्म सब ताकमें रख दिये जाते है ! एक कठोर वचनका ही यह परिणाम है कि. पविप्रता, वैभव, और उन्नतिके शिखर पर पहुंची हुई व्यक्तियोंका पतन हो जाता है । महाभारत आदि ग्रंथ इसी बातके तो साक्षी हैं ! आज भी कठोर वचन के दुष्परिणाम किसीसे छिपे नहीं है इसीलिये वचनशुद्धि पर इतना अधिक. जोर डाला गया है। [-] कठोर वचनके प्रहार कानमें पड़ते ही चित्तमें एक ऐसा विचित्र प्रकारका विकार. (जिसे वैमनस्य कहते हैं) उत्पन्न कर देते हैं परन्तु.

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