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दशवकालिक सूत्र टिप्पणी-जिसमें जीव होता है उसे 'सचित्त' कहते हैं और जीवरहित 'अचित्त' कहते हैं। एक जाति में दूसरी जाति की वस्तु मिला देने से अथवा पकाने से दोनों वस्तुएं अचित्त हो जाती है। [+] (३१) खान का संचल, (४०) सैंधव नमक, (४१) सामान्य
नमक, (४२) रोम देश का नमक, (रोमक), (४३) समुद्र का नमक (४४) खारा (पांशु लवण) तथा (४५) काला नमक आदि अनेक प्रकार के नमक यदि सचित्त ग्रहण किये जाय तो
दूपित हैं। [1] (४६) धूपन (धूप देना अथवा वीडी आदि पीना), (४७) वमन
(औपधों के द्वारा उल्टी करना), () बस्तिकर्म (गुह्य स्थान द्वारा बलिष्ट औषधियों को शरीर में प्रविष्ट करना अथवा हठयोग की क्रियाएं करना), (४६) विरेचन (निष्कारण जुलाब लेना), (१०) नेत्रों की शोभा बढाने के लिये अंजन आदि लगाना, (११) दांतों को रंगीन बनाना, (१२) गात्राभ्यंग (शरीर की टीपटाप करना अथवा शरीर को सजाना)
टिप्पणी-धूपन' शब्द का अर्थ वस्त्रादिक को धूप देना भी होता है। खूब खाजाने पर उसे औषधियों द्वारा उल्टी अथवा जुलाव द्वारा निकाल डालने का प्रयत्न करना भी दूषण है इसी आशयसे वमन एवं विरेचन इन दोनों का निषेध किया है। [20] संयम में संलग्न एवं द्रव्य (उपकरण) से तथा भाव (मोधादि
कपायों) से हलके निर्मथ महर्पियों के लिये उपर्युक १२ प्रकार ' की क्रियाएं अनाचीर्ण (न आचरने योग्य) हैं। [११] उपर्युक्त अनाचार्यों से रहित; पांच प्रास्रवद्वारों के त्यागी
मन, वचन, और काय इन तीन गुप्तियों से गुप्त (संरक्षित);
क्षाय के जीरे के प्रतिपालक (रतक): पंचेन्द्रियों का. चमन करनेवाले, धीर एवं सरल स्वभाषी जो निग्रंथ मुनि होते है।