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पड् जीवनिका
पीछी से अथवा हाथा (छोटे औघा) से, वस्त्र. से; अथवा वस्त्र के सिरे से, हाथ से या मुख से अपनी काया (शरीर) को गर्मी से बचाने के लिये अथवा बाह्य उपण पुद्गल (पदार्थ) को ठंडा करने के लिये स्वयं फूक नहीं मारनी चाहिये अथवा पंखा से वायु नहीं करनी चाहिये और न दूसरे के द्वारा फूंक मरानी चाहिये. और न किसी दूसरे को पंखे की हवा करते देखकर वह ठीक कर रहा है ऐसा मानना ही चाहिये।
- शिप्या है पूज्य ! मैं आजीवन मनसे, वचनसे और कायसे. उक्त प्रकार की क्रियाएं स्वयं न करूंगा, न दूसरों के द्वारा कभी कराऊंगा ही और न कभी किसी को वैसा करते देखकर अनुमोदन ही करूंगा। पूर्वकालमें तत्संबंधी मुझसे जो कुछ भी पाप हुआ हो, उससे अब मैं निवृत्त होता हूं। अपनी आत्मा की साक्षीपूर्वक उसः पापकी निंदा करता हूं। आपके समक्ष मैं उसकी गर्हणा. करता हूं.
और अवसे ऐसे पापकारी, कर्म से अपनी आत्माको सर्वथा अलिप्स करता हूं ॥ १० ॥
गुरु:-पापसे विरक्त तथा नये पापकर्मों के बंध का प्रत्याख्यान, लेनेवाले संयमी साधु अथवा. साध्वीको, दिनमें या. रातमें; एकांत में या साधुसमूहमें, सोते जागते किसी भी अवस्थामें चीजोंपर अथवा बीजोपर स्थित वस्तुओं के ऊपर जो अंकुर हों उनपर, अथवा अंकुरों पर स्थित वस्तुओं पर, उगे हुए गुच्छों के ऊपर अथवाः उगे. हुए गुच्छों पर स्थित किसी वस्तु पर, कुटी पिसी किसी. सचित्त वनस्पति पर अथवा उसपर अवस्थित वस्तु पर, अथवा. जीवों. की उत्पत्ति के योग्य किसी काष्ठ पर होकर स्वयं न जाना चाहिये, न खडा होना चाहिये, न वैठना चाहिये और न लेटना. चाहिये
और न · वह कभी किसी दूसरे को उनपर चलावे, खडा करे,. बिठावे अथवा लिटावे.। और जो कोई उनपर होकर जाता हो; खडाः