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कठिनता - साधक भिन्न २ कठिनताओं को किस प्रकार पार करे ?
क्रोधादि आत्मरिपुत्रों को किस प्रकार जीता जाय ? - मानसिक वाचिक तथा कायिक ब्रह्मचर्य की रक्षा अभिमान कैसे दूर किये जाय ? - ज्ञानका सदुपयोग - साधुकी आदरणीय एवं त्याज्य क्रियाएं
साधु जीवन की समस्याएं और उनका निराकरण |
९ विनयसमाधि
( प्रथम उद्देशक )
विनय की व्यापक व्याख्या -- गुरुकुल में गुरुदेव के प्रति श्रमण साधक सदा भक्तिभाव खखें - अविनीत साधक अपना पतन स्वयमेव किस तरह करता है गुरुको वय किंवा ज्ञान में छोटा जानकर उन की अविनय करने का भयंकर परिणाम - ज्ञानी साधक के लिये भी गुरुभक्ति की आवश्यकता - गुरुभक्त शिष्य का विकास विनीत साधक के विशिष्ट लक्षण |
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( द्वितीय उद्देशक )
.: वृक्ष के विकास के समान अध्यात्मिक मार्ग के विकास की तुलना - धर्म से लेकर उस के अंतिम परिणाम तक का दिग्दर्शन- विनय तथा अविनय के परिणाम विनय के शत्रुओं का मार्मिक वर्णन । ( तृतीय उद्देशक )
पूज्यता की आवश्यकता है क्या ? प्रादर्श पूज्यता कौनसी है ? - पूज्यता के लिये आवश्यक गुण - विनीत साधक अपने मन, वचन और काय का कैसा उपयोग लरे ? विनीत साधक की अंतिम गति ।
( चतुर्थ उद्देशक )
समाधि की व्याख्या और उस के चार साधन - आदर्श ज्ञान,
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