________________
-
-
२
दशवकालिक सूत्र
फता है। मंगल (कल्याण) के ५ प्रकार हैं : (१) शुद्ध मंगल-पुत्रादि का जन्म; (२) अशुद्ध मंगल-गृहादि नये वनवाना; (३) चमत्कारिक मंगल-विवाहादि कार्य; (४) क्षोण मंगल-धनादि की प्राप्ति और (५) सदा मंगल-धर्मपालन । इन सबमें यदि कोई सर्वोत्तम मंगल हो सकता है तो वह केवल धर्म ही है । दूसरे मंगलों में अमंगल होने को संभावना है किन्तु धर्मरूपी मंगल में अमंगल की संभावना है ही नहीं, वह सदा मंगलमय ही है और सदा मंगलमय ही रहेगा क्योंकि वह पालनेवाले को · सदैव मंगलमय रखता है इसीलिये उसे सर्वोत्तम मंगल कहा है। ___जीवों को दुर्गति में जाने से जो वचावे उसका नाम धर्म है। उस धर्म का समास इन तीनों वस्तुओं में हो जाता है :
अहिंसा-अहिंसा अर्थात् प्राणातिपात से विरति । शुद्ध प्रेम अथवा सच्चा विश्वबंधुत्व भाव तभी पैदा होता है जब हृदय में अनुकंपा-दया का स्रोत उमडने लगता है। यावन्मात्र प्राणियों पर मित्रभाव रखना,. उपयोगपूर्वक जानबूझकर किसीको दुःख पहुंचाने की इच्छा के विना जो कोई भी दैहिक, मानसिक, अथवा आत्मिक क्रिया की जाती है वह सब । वस्तुतः अहिंसक क्रिया है। इस प्रकार की अहिंसा का आराधक मात्र अहिंसक हो नहीं होता किन्तु हिंसा का प्रवल विरोधी भी होता है। - संयम-आस्रव के द्वारों से उपरति (पापकार्यों को रोकना) को कहते . है । संयम के तीन प्रकार हैं : (१) कायिक संयम, (२) वाचिक संयम, और (३) मानसिक संयम । शरीर संबंधी आवश्यकताओं को यथाशक्ति घटाते । जाना इसे कायिक, संयम कहते है। वाणी को दुष्टमार्ग से · रोककर सुमार्गः । पर लगाना यहः वाचिक संयम- है और मन को दुर्विकल्पों से.. बचाकर' सुव्यवस्थित रखना-इसे मानसिक संयम कहते हैं। संयम के १७ मेदों का ' विस्तृत वर्णन आगे किया गया है।
. .. ... .तप-वासना के निरोध · करनेको: तप : कहते हैं। गहरी से गहरी भलीन चित्तवृत्ति की शुद्धि के लिये, आंतरिक तथा वाह्य क्रियाएं करना....