Book Title: Agam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Part 02 Uttarajjhayanani Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 426
________________ ઉત્તરઝયણાણિ ૯૫૫ પરિશિષ્ટ ૧: પદાનુક્રમ एणं समयं जहन्नियं 38-१४ एत्तोणतगुणे तहिं १८-४७ एयाइं अट्ठ ठाणाई एग समयं जहनिया 3६-१3 एत्तो पम्हाए परएणं ३४-१४ एयाई तीसे वयणाइ सोच्चा एगकज्जपवनाणं २३-१३, २४, 30 एत्तो य तओ गुत्तीओ २४-१९ एयाए सद्धाए दलाह मझं एगखुरा दुखुरा चेव 3६-१८० एत्तो वि अणंतगुणो ३४-१० थी १३, एयाओ अट्ठ समिईओ एगग्गमणसंनिवेसणयाए णं भंते! २४ १५ थी १८ एयाओ तिन्नि पयडीओ सु०२६ एत्तो सकाममरणं ५-१७ एयाओ दुग्गईओ एगच्छत्तं पसाहित्ता १८-४२ एमेव असायस्स वि 33-७ एयाओ पंच समिईओ एगत्तं च पुहत्तं च २८-१३ एमेव असुहस्स वि 33-१३ एयाओ मूलपयडीओ एगत्तेण पुहत्तेण 3६-११ एमेव इत्थीनिलयस्स मज्झे ३२-१३ एयाणि वि न तायंति एगत्तेण साईया 38-६५ एमेव गंधम्मि गओ पओसं ३२-५८ एया पवयणमाया एगदव्वस्सिया गुणा २८-६ एमेव जाया पयहंति भोए । १४-3४ एपारिसीए इड्डीए एगप्पा अजिए सत्तू २3-3८ एमेव जाया ! सरीरंसि सत्ता १४-१८ एयारिसे पंचकुसीलसंवुडे एगभूओ अरण्णे वा १८-७७ एमेव नन्त्रह त्तिय २८-१८ एयाहि तिहि वि जीवो एगयाचेलए होइ २-१३ एमेव फासम्मि गओ पओसं उ२-८५ एरिसे संपयग्गम्मि एगया आसुरं कार्य 3-3 एमेव भावम्मि गओ पओसं ३२-८८ एवं अणिस्सरो तं पि एगया खत्तिओ होइ 3-४ एमेव मोहाययणं खु तण्हं 3२-६ एवं अदत्ताणि समाययंतो एगया देवलोएसु 3-3 एमेव रसम्मि गओ पओसं 3२-७२ एगरायं न हावए ५-२३ एमेव रूवम्मि गओ पओसं ३२-33 एवं अभित्थुणतो एगविहमणाणत्ता 38-99, ८६, एमेव सद्दम्मि गओ पओसं ३२-४६ एवं अलित्तो कामेहिं १००, ११०, ११८ एमेवहाछंदकुसीलरूवे २०-५० एवं आयरिएहिं अक्खायं एगवीसाए सबलेसु 3१-१५ एयं अकाममरणं ५-१७ एवं करंति संबुद्धा एगामोसा अणेगरूवधुणा २६-२७ एयं चयरित्तकरं २८-33 एवं करेंति संबुद्धा एगा य पुत्वकोडीओ ४६-१७५ एवं जीवस्स लक्खणं २८-११ एवं कालेण ऊ भवे एगणपण्णहोरत्ता उ8-१४१ एयं डज्झइ मंदिरं -१२ एवं खु तस्स सामण्णं एगे ओमाणभीरुए थद्धे २७-१० एयं तवं तु दुविहं 30-39 एवं खेत्तेण ऊ भवे एगे कूडाय गच्छई ५-५ एयं दंडेण फलेण हंता १२-१८ एवं गुणसमाउत्ता एगे जिणे जिया पंच २3-36 एयं धम्महियं नच्चा २-१३ एवं च चिंतइत्ताणं एगेण अणेगाई २८-२२ एयं पंचविहं नाणं २८-५ एवं चरमाणो खलु एगे तिण्णे दुरुत्तरं ५-१ एयं पत्थं महारायं ! १४-४८ एवं जियं सपेहाए एगेत्थ रसगारखे २७-८ एयं परिनाय चरंति दंता १२-४१ एवं तत्थऽहियासए एगे सुचिरकोहणे २७-८ एवं पुण्णपयं सोच्चा १८-३४ एवं तत्थ विचितए एगो उप्पहपट्ठिओ २७-४ एवं मग्गमणुपत्ता २८-3 एयं तवं तु दुविहं एगो एगिथिए सद्धि १-२६ एयं मे संसयं सव्वं २५-१५ एवं ताय ! वियाणह एगो चिट्ठज्ज भत्तट्ठा १-33 एवं सिणाणं कुसलेहि दिटुं १२-४७ एवं तु नवविगप्पं एगोत्थ लहई लाहं ७-१४ एयजोगसमाउत्तो ३४-२२, २४, २६, एवं तु संजयस्सावि एगो पडइ पासेणं २७-५ २८, 30, 3२ एवं तु संसए छिन्ने एगो भंजइ समिलं २.७-४ एयमटुं निसामित्ता -८, ११, १३, एवं ते इड्डिमंतस्स एगो मूलं पि हारिता ७-१५ १७, १८, २३, २५, एवं ते कमसो बुद्धा एगो मूलेण आगओ ७-१४ २७, २८, ३१, 33, एवं ते रामकेसवा एत्तो अणन्तगुणं तहिं १८-४८ 39, 3८, ४१, ४3, एवं थुणित्ताण स रायसीहो एत्तो अणंतगुणिया १८-03 ४५, ५०, ५२ एवं दव्वेण ऊ भवे एत्तो कालविभागं तु 38-१५८, १७3, एयमटुं सपेहाए ६-४ एवं दुपंचसंजुत्ता १८२ एयमटुं सुणेमि ता २०-८ एवं दुस्सीलपडिणीए २४-१० १.२-२४ ૧૨-૧૨ २४-3 33-4 3६-२५६ २४-१८, २६ 33-१६ પ-૨૧ २४-२७ ૨૨-૧૩ १७-२० उ४-५६ २०-१५ ૨૨-૪૫ उ२-३१,४४, ५७ ७०, ८3, & ८-५८ ૨૫-૨૬ ८-१३ १८-८६ ८-१२२२-४८ 3०-२१ 30-१८ २५-33 २०-33 उ०-२०, २३ ७-१८ २-२३ २६-५० 30-30 १४-२३ 33-8 30-६ २3-८६ २५-३४ ૨૦-૧૭ ૧૪-૫૧ ૨૨-૨૭ २०-५८ 30-१५ १-४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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